Savitri Ki Kahani: सावित्री सत्यवान की कहानी महाभारत के बन पर्ब पुस्तक में मिलती है। एक बार राजा युधिस्टिर रुसी मार्कण्डेय से पूछते है, गुरुदेव क्या पहले कभी भी कोई स्त्री द्रोपदी जितना भक्ति प्रदर्शित की है। तब महर्षि मार्कण्डेय राजा युधिस्टिर को सती सावित्री की कथा बिस्तार से सुनती है।
कहानी के मुताबिक द्युमत्सेन के पुत्र सत्यवान, अश्वपति की एकमात्र कन्या सावित्री से विवाह करते है। इसके पहले नारद मुनि ने सावित्री को बताया था की सत्यवान की आयु छोटी है, एक बर्स के बाद ही उनका निधन हो जायेगा। फिर भी सावित्री ने सत्यवान से विवाह की।
भबिस्य बाणी के हिसाब से एक बर्स के बाद सत्यवान की मृत्यु हो जाती है। और उसके बाद कैसे सावित्री ने अपने पतिब्रता को बचने के लिए यमराज को हराया हम आगे जानेंगे।
सावित्री और सत्यवान से जुडी कुछ खास बाते:
- सावित्री के पतिब्रता धर्म के कारन आज भी महिलाएं पति की लम्बी उम्र के लिए सावित्री ब्रत रखती है।
- सावित्री ने अपनी पति को बचने के लिए यमराज से बरदान मांगे।
- सत्यवान के पिता भी राजा थे, लेकिन उनकी राज-पाट छीन गया था।
- सावित्री ने सत्यवान से विवाह के बाद महल छोड़ कर, कुटिआ में रहे लगे।
- सत्यवान के माता-पिता दोनों अंधे थे।
Satyavan और Savitri Ki Kahani
जैसे की हमने Introduction में सावित्री की कहानी का कुछ हिंसा आपके साथ शेयर किए है। चलिए आगे चलकर ये कहानी को पूर्ण करते है।
सत्यवान की परिचय
सत्यवान की कथा में इनका जन्म थाशाल्व देश के राजा द्युमत्सेन के राजपरिवार में हुआ था। लकिन उनके पिता अपने राज्य और अपने दोनों आखो खो कर पत्नी और बेटे सत्यवान के साथ बनबास में रहती थी।
सत्यवान अत्यंत गुणवान, तेजस्वी, धर्मपरायण और नीतिवान राजकुमार थे। बन में रहे कर ही वो अपनी माता-पिता का देखबाल अच्छी से करते थे।
एक भविष्यवाणी के अनुसार, सत्यवान का जीवन मात्र एक वर्ष का शेष था। पर उन्हने इन सब का परबा ना कर, अपने कर्तव्यों का पालन किया और अपने माता-पिता के प्रति निष्ठा और सेवा भाव को सर्बाचो स्तान पर रखा।
सावित्री की परिचय
सावित्री की कथा की बात करे तो इनका उल्लेख महाभारत के वनपर्व में मिलता है। सावित्री मद्रदेश के राजा अश्वपति की पुत्री थीं। सावित्री भी अत्यंत रूपवान, बुद्धिमान, धर्मपरायण और पतिव्रता स्त्री थीं। अश्वपति की घोर तपस्या के फलस्वरूप देवी सावित्री का जन्म हुआ था।
सती सावित्री उनके धैर्य, साहस और सत्य के प्रति उनकी अडिग निष्ठा के कारण वे भारतीय संस्कृति में सतीत्व और नारी शक्ति का प्रतीक मानी जाती हैं।
सावित्री और सत्यवान का मिलन
देवी सावित्री के आसीर्बाद से राजा अश्वपति के यहाँ एक कन्या का जन्म होता है। जिसका नाम सावित्री रखा जाता है। जब सती सावित्री का विवाह योग्य हुआ, तो उसके अनुपम सौंदर्य और तेजस्विता के आगे कोई भी राजकुमार उन्हें चुनने का साहस नहीं कर पाए। जिसे की राजा ने उसे स्वयंवर के लिए स्वयं योग्य वर खोजने भेजा।
सती सावित्री ने अनेक राजकुमारों को देखा पर कोई भी सती सावित्री को पसंद नहीं आए, पर एक समय की बात है, जब उन्हने राजा द्युमत्सेन के पुत्र सत्यवान को देखा। सत्यवान अपने अंधे पिता की सेवा कर रहे थे। वे तेजस्वी, धर्मपरायण और गुणवान थे। सावित्री ने उन्हें पति रूप में चुन लिया।
नारद मुनि ने उन्हें चेताया कि सत्यवान अत्यंत गुणवान तो हैं, लेकिन उनका विवाह के एक वर्ष बाद मृत्यु निश्चित है। इन सभी चेतावनी के बावजूद भी सावित्री ने सत्यवान को ही अपना पति मानने का संकल्प लिया। जिसे की राजा ने विवाह की अनुमति दे दी, और फिर सावित्री सत्यवान से विवाह करके वन में रहने चली गईं।
विवाह के बाद का जीबन
सती सावित्री का विवाह के बाद दोनों ही साथ सुखपूर्वक जीवन बिताया। सावित्री पति की सेवा में सदैव तत्पर रहतीं और अपने ससुर-देवर की भी सेवा करतीं थी।
सावित्री और सत्यवान का मिलन प्रेम, निष्ठा और धर्म का प्रतीक है, और सावित्री की कहानी भारतीय संस्कृति में आदर्श दंपति के रूप में मान्य है।
सत्यवान की मृत्यु और यमराज की आगमन
सावित्री एक पतिव्रता स्त्री थी, जिन्होंने अपनी बुद्धिमानी और निष्ठा से यमराज के कबल से अपने पति को बचाया। यहाँ पर सत्यवान एक वनवासी राजकुमार थे, जिनका जीवन आयु कम बताया गया था रुसी नारद के द्वारा। सती सावित्री का विवाह के पश्चात उन्हने अपने पति के साथ वन में रहने लगे।
एक दिन सावित्री की पति सत्यवान लकड़ियां काटने जंगल गए थे, तभी अचानक उनके सिर में तेज़ दर्द होने के कारन वो वाह पर गिर पड़े। उसी क्षण यमराज वहां आए और सत्यवान के प्राण ले जाने लगे।

सावित्री और यमराज का संवाद
सावित्री और यमराज की कथा में जब यमराज ने सत्यवान के प्राण लेके गए, तभी सावित्री ने भी यमराज का पीछा किया और यमराज से प्रार्थना की कि वे सत्यवान के प्राण लौटा दें। यमराज ने कहा कि यह असंभव है देबि, पर फिर भी सती सावित्री ने यमराज का पीछा किआ, और यमराज से बोले की जबतक उनकी पति सत्यवान का प्राण लोटा नहीं देते वो यमराज का पीछा नहीं छोड़ेंगे। यमराज आगे बढ़ते गए, उनके पीछे पीछे सती सावित्री भी आकाश मार्ग में गई।
पर अंत में यमराज सावित्री के धर्म और निष्ठा से प्रभावित होकर यमराज सावित्री को तीन वरदान मांगने को कहा—
सावित्री का तीन बरदान:
- 1- उसके ससुराल का खोया हुआ राज्य वापस मिले।
- 2- उसके माता-पिता को पुत्र संतान प्राप्त हो।
- 3- उसे सौ पुत्रों का सौभाग्य प्राप्त हो।
यमराज ने सती सावित्री को ये तीनों वरदान दे दिए, लेकिन यहाँ पर सावित्री ने बड़ी चतुराई से तीसरे वरदान का उपयोग किया। तीसरी बरदान में सावित्री ने माँगा था मुझे सौ पुत्रों का सौभाग्य प्राप्त हो। बरदान के पश्चात उन्होंने कहा कि जब सत्यवान जीवित ही नहीं रहेंगे, तो वह सौ पुत्रों को कैसे जन्म दे सकती हैं?
तभी यमराज को अपनी भूल का एहसास हुआ और उन्होंने सत्यवान के प्राण लौटा दिए। इस प्रकार, सावित्री ने अपनी दृढ़ता, प्रेम और बुद्धिमानी से अपने पति को मृत्यु के मुख से वापस ले आईं और यमराज को हराने में सफल हुई।
वट सावित्री व्रत का महत्व
वट सावित्री व्रत को हमारे हिंदू धर्म में महिलाओं के द्वारा अपने पति की लंबी उम्र और सुख-समृद्धि के लिए पालन किआ जाता है। यह व्रत मुख्य रूप से ज्येष्ठ मास की अमावस्या को मनाया जाता है। सावित्री ब्रत का आधार महाभारत की सावित्री और सत्यवान की कथा है, जिसे की हमने पहले बात की, की कैसे सती सावित्री ने अपने पति का प्राण बड़ी चालाकी से यमराज से लाया। यही सत्यवान सावित्री की कहानी से प्रेरित हो कर आज की महिलाये वट सावित्री ब्रत करते आए है।

महत्व के कुछ मुख्य बिंदु:
- पति की दीर्घायु और सुख-समृद्धि
- पारिवारिक सुख-शांति का स्रोत
- धार्मिक और आध्यात्मिक लाभ
- नारी शक्ति और पतिव्रता धर्म का प्रतीक
वट सावित्री ब्रत के विधि
- सभी महिलाएं व्रत रखते हैं और वट वृक्ष की पूजा करके जल अर्पित करती हैं।
- सभी को सत्यवान और सावित्री की कथा सुनाया जाता है।
- वट वृक्ष के चारों ओर कच्चे धागे से 7 या 11 बार परिक्रमा किआ जाता है। और रक्षा सूत्र बांधा जाता है।
- और सभी कार्य सम्पूर्ण होने के बाद,अंत में ब्राह्मणों को भोजन करवाकर व्रत का समापन किया जाता है।
सावित्री और सत्यवान की कथा का समाज पर प्रभाव
सत्यवान और सावित्री की कहानी आज भी भारतीय समाज में नारी शक्ति, पतिव्रता धर्म और अटूट प्रेम का प्रतीक माना जाता है। किस्तारीके से सावित्री ने अपने साहस, धैर्य और बुद्धिमत्ता के माध्यम से यमराज से अपने पति के प्राण वापस लाए, और यह कथा ही आज की स्त्रियों को आत्मबल और संघर्ष की प्रेरणा देती है।
और सती सावित्री का जीबन कहानी से ही प्रेरित होकर वट सावित्री व्रत की परंपरा शुरू हुई, ये ब्रत विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए करती हैं।
सावित्री का कहानी समाज में महिलाओं की शक्ति और आत्मनिर्भरता को बढ़ाता है, जिससे वे जीवन की कठिनाइयों का डटकर सामना कर सकें।
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