Neem Karoli Baba को 20वीं सदी के प्रमुख संत में शामिल किया जाता है। बाबा भगवान हनुमान जी को मानते थे और भक्त बाबा को भगवान हनुमान जी के एक अवतार के रूप में मानते है।
नीम करोली बाबा की जन्म 1900 के आसपास उत्तर प्रदेश के अकबरपुर गांव में हुआ था। महाराज जी का जीवन प्रेम करुणा सेवा और भक्ति का प्रतीक था।
भारत शहिद बाहरी देशों में भी नीम करोली बाबा के भक्त थे।और उन लोग कोई आमलोग नहीं थे बल्कि स्टीव जॉब्स, मार्क जुकरबर्ग और रामदास जैसे विश्व प्रसिद्ध लोक भी बाबा के भक्त है।
समाज के प्रति उनका संदेश: प्रेम करो सेवा करो और सच्चे मन से भगवान को याद करो।
Neem Karoli Baba से जुड़ी 10 अनसुनी बातें
ये 10 अनसुनी बातें आज की युवा पीढ़ी को सिखाएगा की जीवन में सफलता हासिल करने के लिए मनुष्य को मेहनत करने के साथ साथ आध्यात्मिक की पथ पर भी चलना आवश्यक है।
1- नीम करोली बाबा का वास्तविक नाम लक्ष्मी नारायण शर्मा था, 1900 के आसपास उत्तर प्रदेश के अकबरपुर गांव में नीम करोली बाबा का जन्म एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम दुर्गा प्रसाद शर्मा था, उस समय बाल्य विभाग की प्रथा चल रही थी जिससे कि नीम करोली बाबा का विवाह 11 वर्ष की उम्र में ही कर दिया गया था, और बाद में हनुमान भक्त नीम करोली बाबा 17 वर्ष की उम्र में ज्ञान की प्राप्ति कर लेते हैं।
2- 1958 के साल में संसार की कल्याण हेतु नीम करोली बाबा ने अपने घर का त्याग कर दिए। और संत साधुओं के साथ मिलकर रहने लगे थे, जैसे कि लक्ष्मण दास, हांडी वाले बाबा और तिकोनिया वाले बाबा। एक समय की बात है नीम करोली बाबा गुजरात के बबनिया मोरबी में तपस्या कर रहे थे, तो बाबा को वहां पर तलइया बाबा के नाम से भी लोग पुकारने लगे थे।
3- इसे ध्यान से देखिये एक बार की बात है, नीम करोली बाबा ट्रेन से सफर कर रहे थे। और जब टिकट चेकर उनके पास आए तो फिर उनके पास टिकट नहीं था, इसी वजह से टिकट चेकर ने अगले ही स्टेशन पर नीम करोली बाबा को उतार दिया था, और बाबा कुछ ही दूर जाकर नीचे बैठ गए थे।
और जब ट्रेन छोड़ने की समय आई सब लोग रेडी थे परंतु ट्रेन अपनी जगह से एक इंच भी नहीं हिली कितनी कोशिश के बाद भी ट्रेन अपनी जगह से नहीं हिली। और जब मजिस्ट्रेट आए तो वह बाबा को जानते थे मजिस्ट्रेट ने तुरंत ही ऑफिसर्स को बाबा से माफी मांगने के लिए कहा और उन्हें सम्मान पूर्वक अंदर लाने को कहा। उसके बाद सभी ऑफिसर्स ने बाबा से माफी मांगी और सलमान पूर्वक उन्हें ट्रेन में बिठाया। और करिश्मा देखो बाबा की ट्रेन में बैठते ही ट्रेन चल पड़ी तभी से बाबा को नीम करोली नाम से जाना गया।
4- 1961 की साल में पहली बार नीम करोली बाबा उत्तराखंड के नैनीताल के पास कैंची धाम में आए। और बाबा अपने पुराने मित्र पूर्णानंद जी के साथ मिलकर कैंचीधाम में आश्रम बनाने के बारे में विचार किए। और उसके 3 साल के बाद साल 1964 में नीम करोली बाबा ने इस आश्रम की स्थापना की थी।
5- नीम करोली बाबा की मृत्यु 11 सितंबर 1973 को 1:15 बजे भारत देश के वृंदावन में हुआ था, मधुमेह के कारण नीम करोली बाबा कोमा में चले गए थे।
बाद में नीम करोली बाबा की समाधि स्थल को पंतनगर में बनवाया गया। इसी जगह की अद्भुत बात यह है कि जो कोई भी व्यक्ति अपना कोई इच्छा या मुराद लेकर जाए तो वह खाली हाथ नहीं लौटता। बाबा की समाधि के साथ-साथ यहां नीम करोली बाबा की भव्य मूर्ति भी स्थापित किया गया है। और इसके पास भगवान हनुमान जी की एक मूर्ति भी बनवाया गया है।
6- नीम करोली बाबा की परिवार का बात करें तो संन्यास लेने से पूर्व उनके दो पुत्र और एक पुत्री थे। आज उनके जेस्ट पुत्र अनेक सिंह भोपाल में अपने परिवार के साथ रहते हैं। और उनके कनिष्ठ पुत्र धर्म नारायण शर्मा वन विभाग में रेंजर के पद पर थे। हाल ही में उनका निधन हो चुका है।
7- नीम करोली बाबा की भक्तजनों की बात करें तो उनकी भक्त कोई आम लग नहीं है, बल्कि एप्पल के मालिक स्टीव जॉब्स फेसबुक के मालिक मार्क जुकरबर्ग और हॉलीवुड एक्ट्रेस जूलिया रॉबर्ट्स का नाम लिया जाता है। और यह सत्य है कि नीम करोली बाबा की दर्शन करके उनका जीवन बदल गया।

8- हर साल जून के महीने में 15 तारीख को कैंची धाम में एक बड़े से मेले का आयोजन किया जाता है। इस मेले में देश-विदेश से कई सारे भक्त आते हैं और सब लोग नीम करोली बाबा को भगवान हनुमान जी का एक अवतार मानते हैं। इसी स्थान पर भगवान हनुमान जी का एक भव्य मंदिर बनवाया गया है। और इसके साथ 5 देवी देवताओं के मंदिर भी बनवाया गया है।
9- कुछ कथा है जो कि सच है या झूठ आज तक नहीं पता चला। अक्सर यह सुनने को आया है कि नीम करोली बाबा हवा में उड़ सकते थे और हवा में चल भी सकते थे। हां यह एक सत्य बात है कि बाबा एक महान संत थे, परंतु उनके पास कोई जादू या भौतिक उड़ने की शक्ति थी इसकी पुष्टि कोई भी नहीं कर पाया है। और इसका कोई प्रमाण भी नहीं है।
10- कुछ अनुयायी यह दावा करते हैं कि बाबा नीम करौली कभी भोजन नहीं करते थे और केवल आध्यात्मिक ऊर्जा से जीवित रहते थे। पर यह बात असत्य है। बाबा भोजन करते थे। कई बार वे स्वयं भोजन वितरण में भाग लेते थे। वे अन्न को “प्रसाद” मानते थे और भोजन को जीवन का एक आवश्यक अंग।
हाली में हमने प्रेमानंद जी महाराज के जीबन कहानी पर भी चर्चा किए थे।
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