Lord Krishna’s Childhood Stories In Hindi: जानिए कृष्ण की पूरी काहानी

Krishna’s Childhood Stories: भगबान कृष्ण के बचपन की कहानिया मानब जाती के लिए एक अनमोल खजाना है, जो की सभी को भक्ति, प्रेम, साहस और ज्ञान जैसे अद्भुत सन्देश देती है। भगबान कृष्ण के माखन चोरी जैसे सरारते, उनकी मासूमियत को दर्शाता है, तो कंस जैसे बदमाश का बद्ध उनके पराक्रम को दर्शाता है।

भगबान कृष्ण 16 कलाओ से युक्त और 64 बिद्याओ में पारंगत थे। इनकी काहानी सभी के लिए लोकप्रिय हिन्दू भाबनाओ में से एक है। जो की हमें जीबन में कई सारे चीजे सिखाती है। और ये सभी प्रमाण हामे कई सारे रिसर्च करने के बाद पता चला है।

इन सभी काहानियों के माध्यम से हमें कृष्ण के परमेस्वर और मानबीय दोनों रूपों की झलक मिलती है, जो जीबन में हमें कई सारे चीजे सिखाती है। ये लेख की माध्यम से हम श्री कृष्ण की काहानी और कृष्ण की बचपन की लीला के बारे में जानेंगे, और इन सभी कार्य से हमें क्या सीख मिलती है ये भी जानेंगे

भगबान कृष्ण की माता-पिता की काहानी

भगबान कृष्ण के माता-पिता बसुदेव और देवकी थे, इन दोनों की काहानी त्याग, बलिदान और परमेस्वर पे अटूट बिस्वास का प्रतिक है। ये काहानी भगबत गीता और महाभारत जैसे ग्रन्थ में बर्णित किआ गया है। बापस आते है काहानी में, बसुदेव और देवकी ने जीबन में बहुत कठिनइयो का सामना किआ ताकि कृष्ण अबतरित होकर अधर्म का नास करे।

devaki and vasudev story
image credit- Amrit kahaniya youtube channel

माता-पिता का परिचय

बसुदेव यादव बंस के एक योद्धा थे। और मथुरा के राजा अग्रसेन का मंत्री भी थे। देवकी अग्रसेन का भाई राजा देवक की पुत्री थी। इन दोनों की विवाह मथुरा में धूम धाम से हुआ था और ये विवाह एक धार्मिक उदेस्य को लेकर किआ गया था, जिसमे भगबान बिष्नु के अबतार कृष्ण का जन्म होना था।

देवकी वसुदेव का बलिदान

विवाह के पश्चात कंस जो देवकी का भाई थी उसे पता चलता है की देवकी का आठवा पुत्र उसका अंत करेगा, जिसे की कंस क्रोधित हो कर देवकी को मारने का प्रयास करता है। लेकिन बसुदेव ने कंस से बिनती की की वो अपने हर संतान को जन्म के बाद कंस के हबाले कर देंगे। कंस ने ये स्वीकार करके उन्हें करबास में दाल दिआ।

कारागार में कठोर जीबन

देवकी और बसुदेव ने कारागार में कई बरसो तक कठोर जीबन ब्यतीत किआ, और कंस ने 7 नबजात सिसुओ को एक-एक करके मार दिआ। पैर उनका बिस्वास था एक दिन भगबान अधर्म का नास करेंगे और सचाई की बिजय होगी।

सिख
बड़ी से बड़ी कठिनाओ में भी बिस्वास, धैर्य और त्याग से जीबन में आने बलि हर संकट को पार किआ जा सकता है।

भगबान कृष्ण की जन्म की कथा

देवकी और बसुदेव की सात सन्तानो का कंस ने जन्म लेते ही हत्या कर डाला, और उसे ये बिस्वास था की देवकी की कोई भी पुत्र उसका अंत का कारण नहीं बनेगा। पैर आठ्बी सन्तानो के रूप में भगबान बिष्नु ने श्री कृष्ण की अबतार लेने का निश्चय किआ। भगबान बिष्नु देवकी और बसुदेव के समुख प्रकट हो कर उन्हें सांत किए, और उन्हें आसीर्बाद दिए।

Krishna's Childhood Stories
Krishna’s Childhood Stories

श्री कृष्ण की काहानी के मुताबिक उनकी जन्म अस्टमी तिथि, रोहिणी नक्षत्र में आधी रात को हुआ था, और इस समय में जेल के सारे ताले अपने आप खुल गए, सभी पेहेरेदार सो गए और बसुदेव ने छोटी सी बालक जिसे आज हम भगबान कृष्ण केहेते है, उन्हें ले कर यमुना नदी पार की।
Krishna’s Childhood Stories में आगे और भी कई राज हम जानेंगे, इसलिए ध्यान से पढ़िए।

कृष्ण का नन्द-यशोदा के घर में आगमन

उस दिन जोर से बारिस हो रही थी, बादल कड़क रहे थे और बसुदेव ने नन्ही कृष्ण को यमुना नदी पार कराके उनके मित्र नन्द और पत्नी यशोदा के घर में छोड़ कर, उनकी कन्या योगमाया को लेकर लोट आये। और जब कंस ने उस कन्या को मारना चाह वो कन्या हवा में उड़ गयी और देवी का रूप धारण करके कंस को चेताबनी दी की कंस का अंत अबस्य होगा, और मथुरा में ही होगा।

सिख
श्री कृष्ण की जन्म से हमें अधर्म के खिलाप संघर्ष, धैर्य, कर्तब्य पालन जैसे ज्ञान सीखने को मिलती है।

कृष्ण और माता जसोदा की काहानी

माता यशोदा का प्रेम श्री कृष्ण के ऊपर इतना गेहेरा और निश्छल था की उन्हने कभी कृष्ण को भगबान के रूप में नहीं देखा। कृष्ण तो उनके लिए हमेशा वही नट खट बचा थे, जो उन्हें हर पल परिसान करते थे। कृष्ण और माता यशोदा का प्रेम एक ऐसी छबि बनाती है, जो हमारे आस्था को गेहेरा करता है। यही कारन है की माता यशोदा को कृष्ण के सबसे प्रिय माता माना जाता है।

Krishna’s Childhood Stories में हामे ये भी देखने को मिलती है, जैसे की श्री कृष्ण का माखन चोरी करना, गोपिओ को परिसान करना जिसके बारे में की हम आगे बात करेंगे।

सिख
कृष्ण और माता यशोदा की काहानी हमें सिखाती है की प्रेम, ममता और भक्ति की सक्ति से हम आसानी से परमेस्वर को पा सकते है।

श्री कृष्ण की बचपन की लीलाये

श्री कृष्ण की बचपन की लीलाये केबल मनरंजन का साधन नहीं है, उनमे आध्यात्मिक और नैतिक सन्देश छुपे हुए है। कृष्ण की लीलाये हामे प्रेम,स्नेह,समर्पण जैसे सन्देश देती है। तो चलिए बिस्तृत से बर्णन करते है कृष्ण की बचपन की लीला के बारे में।

1- माखन चोरी की लीलाए

कृष्ण गोलुल से हर दिन माखन चोरी करते थे। और भगबान का ये लीला दर्शाता है की वो अपने भक्तो को प्रेम का अस्वासन देना चाहते है। हर दिन कई घर से माखन चुराते थे, कई गोपिओ का मटकी तोड़ देते थे, पैर फिर भी गोकुल बसी कान्हा को बहुत स्नेह करते थे।

2- दही हांड़ी की लीला

ये लीला में भगबान कृष्ण अपने सभी मित्र के साथ मिलकर मटकी में लटका हुआ माखन खाते थे। कृष्ण की ये लीला से हामे सिख मिलती है की जीबन में सहयोग और समानता का भाब होना चाहिए। मिलकर कोई भी कठिन कार्य करने से वो कार्य सरल हो जाता है।

सिख
कृष्ण की इन लीलाओ से प्रेम, भक्ति, साहस, और समर्पण जैसे ज्ञान प्राप्त होता है।

कृष्ण और सुदामा का मिलन

Krishna’s Childhood Stories में मतलब उनकी बचपन की काहानी में सुदामा का जिक्र नहीं होगा तो कैसे होगा।
कृष्ण और सुदामा रुसी संदीपति के आश्रम में सिख्या ग्रहण करते थे, और वहा से ही पढाई के साथ उनका मित्रता भी गेहेरी हो गई। सुदामा गरीब ब्राह्मण परिबार से थे और कृष्ण यादव कुल के राज कुमार थे। लेकिन उनकी मित्रता में धन दौलत और जाती वेद में भेदभाब नहीं था।

सुदामा का द्वारका में आगमन

गुरुकुल से आने के बाद कई समय बीत गेय कृष्ण द्वारका का राजा बन गए और सुदामा गरीब में जीबन जापन करते थे। एक दिन सुदामा की पत्नी ने कृष्ण से मदत मांगने की सुजाह दी, हालांकि मदत मांगने में सुदामा संकोच कर रहे थे, पैर उनकी पत्नी की बात रखने के लिए उन्हने द्वारका जाने का निश्चय किआ।

सुदामा ने अपने मित्र के लिए स्नेह से कुछ चावल लयेथे, भगबान कृष्ण को ये बात पता थी, जब सुदामा राजमहल पहंचे कृष्ण दौड़ कर अपने मित्र का स्वागत किए और सुदामा को गले से लगाया, उनके पैर को धोया और हर तरह से आदर सत्कार किआ।

सुदामा ने कृष्ण के लिए जो चावल लाये थे कृष्ण ने उसे बड़ी ही प्रेम से खाए मनो अमृत हो। सुदामा का लौटने का समय हो गया, उन्होंने उनकी गरीबी की बिना जीकर किए ही वहा से लोट आये, लेकिन जब वो घर पहंचे उन्हने देखा उनकी झपड़ा भब्य महल में बदल चूका था। और ये था भगबान कृष्ण की मित्रता का उपहार।

सिख
कृष्ण और सुदामा का मित्रता सिखाती है की सच्ची मित्रता हमेशा कठिन समय में साथ देते है, और बिना किसी अपेक्ष्य से प्रेम करते है।

राधा और कृष्ण की बचपन की काहानी

राधा और कृष्ण की बचपन प्रेम,भक्ति और आध्यात्मिकता का संगम है। उनकी बचपन की लीलाए सच्चे प्रेम और निश्छलता की सुन्दर मिसाल है। कृष्ण का राधा के घर से माखन चोरी करना, अक्सर यमुना नदी किनारे खेल-कूद करना, ये सब प्रेम और भक्ति का प्रतिक है। राधा ने हमेशा कृष्ण के अंदर परमेस्वर को देखा,और कृष्ण ने राधा के समर्पण और प्रेम को अपनी सक्ति माना।

कृष्ण का राधा के साथ पेहेली मुलाकात

केहेते है एक बार राधा अपनी सखियों के साथ यमुना नदी के किनारे खेल रही थी, उसी समय भगबान कृष्ण ने अपनी बांसुरी बजानी सुरु की। और बांसुरी की ये मधुर धुन को सुन कर राधा मंत्र मुग्ध हो गई। और इसी दिन से कृष्ण और राधा के बिच मित्रता और प्रेम का आरम्भ हुआ।
और हं राधा और कृष्ण का मिलन यमुना नदी के किनारे ही हुई थी।

सिख
राधा और कृष्ण की काहानी समाज को सिखाती है की जीबन में सच्चा सुख प्रेम और भक्ति में ही है।

कृष्ण और फल बिक्रेता की काहानी

Krishna’s Childhood Stories में ये काहानी दुनिआ को सेबा, समर्पण,और प्रेम का महत्वो सिखाती है।
काहानी का आरम्भ
द्वापर युग में एक गरीब फल बिक्रेता टोकरी में ताजे ताजे फल ले कर गाओं गाओं बिकता था। एक दिन वो गोकुल पहंचा। और नन्द राजा के घर जा कर पुकारने लगा ” फल ले लो! तजा तजा फल ” भगबान कृष्ण उस समय में छोटे थे। जब उन्होंने फल बिक्रेता की अबाज सुनी, तो तुरंत दौड़ कर बाहार चले आये, भगबान की नजर उन फल पैर पड़े, लेकिन उनके पास पैसे नहीं थे, तो उन्होंने अपने मुट्ठी में कुछ चावल ले कर फल बिक्रेता के पास दौड़े।

और चावल फल बिक्रेता को दे दी, फल बिक्रेता ने उनकी मासूमियत और भोलेपन को देख कर तुरंत अपने सरे फल उन्हें दे दिए। बाद में जब फल बिक्रेता ने अपने पोटली देखि, तो वो सारे चावल का दाने सोने और रत्नो में बदल चुके थे। इसे देख कर उसे समझ में आया की ये कोई साधारण बालक नहीं है, ये स्वयम परमेस्वर है।

काहानी का सन्देश
1- सेबा का महोत्वो
जब कोई बिना स्वार्थ रखे किसी अजनबी का मदत करे, तो उसे हमेशा फल के रूप में भगबान का आसीर्बाद मिलता है।
2- प्रेम और करुणा
कोई भी कार्य को अगर हम सच्चे प्रेम से करते है, तो वो कार्य असाधारण हो जाता है।

सिख
ये बाल गोपाल की काहानी हामे सिखाती है की निस्वार्थ सेबा और समर्पण का फल हमेशा अनमोल होता है।

कृष्ण की मिट्टी खाने की काहानी

कृष्ण हमेशा अपने सखाओ के साथ खेल-कूद में मग्न रहते थे। एक दिन उन्होंने खेल खेल में आपने मुँह में मिट्टी डाल दी, तत्काल उनके मित्रो ने मैया यशोदा को ये बात बता दी। माता यशोदा क्रोध और चिंता से उनके पास गई और पूछे,
कान्हा तुमने मिट्टी खाई है क्या?”
कृष्ण ने धीरे से उत्तर दिए “ मैया मेने कुछ नहीं खाया। मेरे सभी मित्री झूट बोल रहे है
माता यशोदा ने काहा
अगर तुमने कुछ नहीं खाया तो अपना मुँह खोल कर दिखाओ। “
कृष्ण ने मुस्कुराते हुए अपना मुँह खोला। जब माता यशोदा उनके मुँह में झांकी तो उन्हें सम्पूर्ण ब्रम्हांड दिखा। माता यशोदा ने आकाश, तारे, चन्द्रमा और सूर्य कृष्ण के मुँह में देखे। ये सभी दृस्य देख कर माता यशोदा बिस्मित रहे गई।

सिख
ये कथा हमें चमत्कारों से जोड़ती है, और उनका प्रेम और सरारती स्वोभाब को भी दर्शाता है।

कृष्ण और पूतना की काहानी

पूतना और कृष्ण की ये काहानी श्रीमदभगबत पुराण जैसे ग्रंथो में भी बर्णित है। पूतना कंस की वेजी हुई एक दुस्ट राख्यासी थी, जो कंस के आदेश से भगबान कृष्ण को मारना चाहतीथी। क्यों की कंस को पता चल गया था की देवकी का अठवा संतान उसकी मोत का कारन बनेगा और वो गोकुल में है, जिसका नाम कृष्ण है।

krishna or putana ki kahani
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Krishna’s Childhood Stories में पूतना की योजना

गोकुल में जाने के लिए पूतना ने एक सुन्दर स्त्री का रूप धारण किआ, जिसे देख कर सभी गोकुल बसी मोहित हो गए। और माता यशोदा भी उन्हें देख कर मोहित हो गए। पूतना का लक्ष्य था कृष्ण को बिस का दूध पान कराके मार डालना, यशोदा ने उनकी स्वोभाब देख कर कृष्ण को दूध पिलाने दिआ।
जैसे ही पूतना ने उन्हें अपना दूध पिलाने लगी कृष्ण ने ना सिर्फ दूध बल्कि उसकी प्राणशक्ति भी खिंच लिए।

काहानी का सन्देश
1- सत्य की बिजय
2- भगबान की लीला
3- भक्ति का सन्देश

सिख
सत्य, धर्म, और भक्ति का जीत होता है। और भगबान हर समय भक्तो की राख्या करते है।

कृष्ण और अरिस्टासुर की काहानी

श्री कृष्ण की काहानी में उन्होंने गौ-रक्ष्या और धर्म के रक्ष्या हेतु अरिस्टासुर जैसे राख्यास का बद किआ था। ये राक्षस को कंस के द्वारा कृष्ण को मारने के लिए भेजा गया था। ये राख्यास बिसाल काय सांड के रूप में आया था।

जब वो गोकुल में आक्रमण किआ उसकी खुर और अबाज से ही गोकुल में डर फेल गया। राख्यास ने कृष्ण को ललकारने के लिए गोकुल बासी को घायल करने लगा। भगबान कृष्ण ने ये देख कर उसके साथ यूद्ध किए, उसके सींग पकडे और जमीन पैर पटक दिए, और अपनी अदितीय बल से उसे पराजित किए।

काहानी का सन्देश
1- धर्म की रख्या
2- गोऊ माता की राख्या
3- भय का अंत

सिख
ये काहानी साहस, गऊ-राख्या और सत्य की बिजय का सन्देश देती है। हर संकट में भगबान भक्तो की राख्या करते है।

कृष्ण और केसी की काहानी

अरिष्टासुर को पराजित करने के बाद। रुसी नारद ने कंस को बताया की कृष्ण ही वो आठवा संतान है, जो कंस का मृत्यु की कारण बनेगा। ये सुनकर कंस को बहुत ही ज्यादा गुस्सा आया, और उसने कृष्ण को मारने के लिए लम्बे बालो बाले घोड़े केसी को बुलाया

ये राख्यास भी कृष्ण को ललकारने के लिए गोकुल बासी को डराने लागा। भगबान कृष्ण उसे लड़ाई के लिए चुनती दी, और लड़ाई में अपनी कोहनी से उसकी सारि दांत तोड़ डाले। और गला दबा कर केसी की बद कर दिए। और तब से कृष्ण को नया नाम दिआ गया ‘केसब’ केसी का बद करने बाला।

सिख
डोरो मत डट के खड़े रोहो

कृष्ण और कालिआ की काहानी

ये काहानी है बृन्दाबन में स्तित यमुना नदी की, कृष्णा चाइल्डहुड मिराक्लेस में ये सबसे आकर्सणीअ घटना है। एक दिन यमुना नदी की जल बिसेला हो गया, जिसे सभी गोकुल बसी और जानबर कस्ट में थे। क्यों की कालीअ नामक एक बिसाल और बिसेला नाग, यमुना में आ कर बस गया था। जिसे की नदी का पानी ज़ेहरीला और कला हो गया था।

सब गोलुल बासी भयभीत हो कर भगबान कृष्ण को मदत की प्राथना की, कृष्ण ने यमुना में आ कर सीधे नदी में छलांग लगा दी, जैसे ही कृष्ण यमुना के भीतर पहंचे कालिआ ने उनपर हामला कर दिआ। कृष्ण और कालिआ की ये यूद्ध में कृष्ण बिजय हो कर, कालिआ की फैन पैर नृत्य करने लगे। जिसे की कालिआ का अहंकार चूर-चूर हो गया।

krishna or kalia ki kahani
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इसके बाद कालिआ ने अपनी गलती मानी, भगबान कृष्ण भी कालिआ को माफ़ करके यमुना नदी से चले जाने को कहा। और कालिआ अपनी परिबार सहित वहा से चला गया।

सिख
हमेशा अधर्मं और अहंकार का नास निश्चित है।

कृष्ण ने गिरी गोवेर्धन के निचे गाओं बालो को बचाया

गोवेर्धन पर्बत की काहानी, Krishna’s Childhood Stories में ये काहानी एक अद्भुत काहानी है।

कथा के अनुसार गोकुल और बृन्दाबन बसी हर साल इंद्रदेव की पूजा करते थे। ताकि गाओं में अर्न और जल का प्राप्ति हो। एक दिन भगबान कृष्ण ने सबाल किआ की बर्सा होने का कारन त प्रकृति का प्रक्रिआ है। और सभी लोगो को समझया की, की हमें धरती, गोवर्धन पर्बत और पसु-पक्षी की पूजा करनी चाहिए। कृष्ण की ये सुझाव से सभी ने इन्द्र की पूजा छोड़ कर, गोवर्धन पर्बत की पूजा करनी सुरु कर दी।

इन्द्र को जब ये बात पता चली, वो क्रोधित हो कर गोकुल में मूसलधार बर्षा सुरु कर दी, जिसे की पूरा गाओं पानी में दुब गया। और सभी लोग संकट में पड गे थे।

कृष्ण का गोवेर्धन पर्बत उठाना

ये हालत देख कर भगबान कृष्ण ने एक उपाय निकाला। उन्ह्नोने अपनी एक ऊँगली पैर गोवेर्धन पर्बत को उठा लिया और सभी गाओं बासी को उसके निचे आने को कहा। भगबान कृष्ण ने सात दिन- सात रात तक अपनी छोटी ऊँगली पैर गोवेर्धन परबत को उठा के रखा। जिसे की सभी गाओं बसी बर्षा से सुरखित रहे।

सात दिनों तक बर्षा करने के बाद इन्द्र को भी अपनी गलती का एहसास हुआ। और वो समझ गए की कृष्ण कोई साधरण बालक नहीं, बल्कि वो भगबान का एक अबतर है।
इसके बाद कृष्ण कहते है, राजा का कर्तब्य है अपने प्रजा की रख्या करना, न की उन पैर क्रोध करना।

सिख
कभी भी अहंकार नहीं करना चाहिए, और हमें धरती और प्रकुति का सन्मान करना चाहिए।

भगबान कृष्ण और ब्रम्हा

कृष्ण की बचपन में एक बार ब्रम्हा जी ने उनकी परिख्या लेने का निश्चय किआ। वो देखना चाहते थे की क्या कृष्ण बास्तब में बिष्नु भगबान की अबतर है।

ब्रम्हा जी की परिख्या

ब्रम्हा जी ने अपनी शक्ति का उपयोग करके सभी गोलबालो और गायों को छुपा दिए। पैर भगबान कृष्ण समझ गए की ये कार्य ब्रम्हा का है। ब्रम्हा देखना चाहते थे की ये स्तिति में कृष्ण क्या करते है।
तभी कृष्ण ने अपनी योगमाया का उपयोग करके सभी गोलबालो और गायों के रूप में स्वयम को प्रकट कर दिआ।

कुछ समय के पश्चात, जब ब्रम्हा लोटे तो उन्हने देखा की सभी गोलबालो और गाये वही है। ध्यान से देखने पैर वो जानपाय की सभी ने भगबान बिष्नु के स्योरुप दिख रहे थे। और तब ब्रम्हा समझ गए की कृष्ण सम्पूर्ण ब्रम्हांड की स्वामी है।

सिख
परमेस्वर की महिमा को किसी भी भौतिक बुद्धि या माया से परखा नहीं जा सकता।

कृष्ण के हात कंस की मृत्यु

Krishna’s Childhood Stories में आखरी बिसय है, कृष्ण के हात कंस की मृत्यु

कंस मथुरा के राजा थे उन्होंने अपनी पिता अग्रसेन को कारागार में डाल कर खुद ही मथुरा का सिंहासन हड़प लिए। कंस एक क्रूर और अत्याचारी राजा थे। हमेशा अपनी प्रजा पैर अत्याचार करते थे।
एक बार कंस ने धनुस जोग्य के बहाना से कृष्ण और बलराम को मथुरा में आमंत्रित किआ। कृष्ण और बलराम मथुरा आके कंस की सभी चालो को बिफल किआ

कंस का बद्ध

धनुस जग्य के बाद कुस्ती लड़ने की खेल को आयोजन किआ गया। और इसमें कृष्ण और बलराम को भी आमंत्रित किआ गया। कुस्ती के आरम्भ में ही चाणूर और मुस्टिक जैसे सक्तीसाली पेहेलबन को कृष्ण और बलराम ने धूल चटा दी।
इसके बाद कृष्ण सीधे कंस को लड़ने के लिए चुनती दी, कंस ने डर के बाबजूद भी मैदान में उतरे, पैर भगबान कृष्ण के आगे कंस टिक नहीं पाए। कृष्ण ने कंस की छाती पैर प्रहार करके उसका अंत कर दिए।

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कंस का बद्ध होने के बाद मथुरा में उस्चब मनाया गया, सभी लोग खुश रहने लगे। आगे जा कर द्वापर युग में भगबान कृष्ण महाभारत जैसे महा यूद्ध में अर्जुन का सारथि बनकर यूद्ध में भाग लेते है। और हाली में हमने महाभारत सच होने के बिसय पैर भी चर्चा किए है।

सिख
ये कथा युग-युग तक अच्छाई और बुराई के बिच संतुलन रखने का कार्य करेगी

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Shiv Parvati Vivah Katha जानिए हिंदी में: भक्ति और बिस्वास का प्रतिक

1- कृष्ण क्या खाना पसंद करते है?

भगबान कृष्ण को ( माखन ) और दही बहुत ही ज्यादा पसंद था। और उन्हें दूध से बानी चीजे और मीठा भी बहुत पसंद था। कृष्ण के बचपन में उन्हें माखन चोर कहते थे। क्यों की वो गोपिओं का माखन चुराते थे।

2- किस उम्र में कृष्ण की मृत्यु हुई थी?

भगबान कृष्ण के मृत्यु 125 बर्ष की आयु में हुई थी। 3102 ईर्षा पूर्ब भगबान कृष्ण ने हिरन नदी के तट पैर अपने अंतिम सास ली। एक शिकारी गलती से उनके पैर पर तीर मारने की बजह से उनकी मृत्यु हो गयी थी।

3- छोटे बच्चे कृष्ण से क्यों प्यार करते है?

छोटे बच्चे भगबान कृष्ण से इसलिए प्यार करते है क्यों की उनकी बचपन मनमोहक और चुलबुली है। कृष्ण का मासूमियत और प्यारा स्वोभाब बचे को आकर्षित करता है।

5- कृष्ण का रंग नीला क्यों है?

भगबान कृष्ण की नीला रंग उनकी अनन्ता, गेहेराई और दिब्यता का प्रतिक है। जो आकाश और समुद्र की असिमता को दर्शाता है।

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