Krishna Or Sudama Ji Ki Kahani: भक्ति और मित्रता का प्रतिक कृष्ण-सुदामा की कहानी

Krishna Or Sudama Ji Ki Kahani को एक सच्ची मित्रता भक्ति और विनम्रता का प्रतीक माना गया है। उज्जैन में रूसी शांतिपानी के आश्रम में भगवान कृष्ण और सुदामा शिक्षा ग्रहण करते थे। वहां पर सुदामा कृष्ण की खास मित्र थे। सुदामा के अलावा भी कृष्णा की कई मित्र थे जैसे कि मधु मंगल, सुबल,भद्र,चंद्रहास और बकुल। पर फिर भी सुदामा कृष्ण की प्रिय मित्र थे।

सुदामा एक गरीब ब्राह्मण की पुत्र थे, ओर श्री कृष्णा एक राजकीय परिवार के थे। आगे जाकर कैसे कृष्ण के आशीर्वाद से सुदामा का पूरा जीवन ही परिवर्तन हो जाता है यह हम आगे जानेंगे।

सिख:-

1-कृष्ण और सुदामा की कहानी हमें यह सिखाता है कि सच्चे मित्र वह होते हैं जो एक दूसरे की भावनाओं को समझते हैं ना कि उनके आर्थिक स्थिति को।

2-सच्ची मित्रता के संबंध में हमेशा मदद और समर्थन शामिल होता है, और यह एक व्यक्ति को जीवन में बेहतर तरीके से आगे बढ़ाने में मदद करता है।

कौन है सुदामा?

सुदामा एक गरीब ब्राह्मण के पुत्र थे, इन्हें बचपन में कुचैला भी कहा जाता था। कृष्ण सुदामा की कथा भागवत में भी वर्णन है। सुदामा भगवान श्रीकृष्ण और बलराम के साथ संदीपन ऋषि के आश्रम में शिक्षा ग्रहण करते थे। विवाह के बाद से ही सुदामा अक्सर श्रीकृष्ण की उदारता और अपनी मित्रता के बारे में पत्नी सुशीला से चर्चा किया करते थे। सुदामा कभी भी किसी से कुछ माँगते नहीं थे। जो कुछ भी बिना माँगे मिल जाता था, उसी को भगवान को अर्पण करके अपना तथा पत्नी का जीवन निर्वाह करते थे। उनके दिन बड़ी ही दरिद्रता में व्यतीत होते थे।

Krishna Or Sudama Ji Ki Kahani

कहानी का आरंभ होता है यह से:

कृष्ण सुदामा की मिलन: जब कृष्ण और सुदामा ऋषि संदीपनी के आश्रम में शिक्षा ग्रहण करते थे, उस समय रोज उन दोनों भिक्षा मांगने जाते थे और लाकर गुरु मां के चरणों में रखते थे। और भोजन के रूप में जो भी दिया जाता था उसे सेवन करते थे।

एक बार की बात है गुरु मां ने सुदामा को चने दिए और कहा इसमें से आधे कृष्ण को देना और आधे तुम खाना और जंगल मैं जाकर लकड़ी लाना।इसके बाद वह दोनों जंगल चले जाते हैं। जंगल में अचानक से उन्हें एक शेर दिख जाता है, शेर को देखते ही वो लोक एक पेड़ में चढ़ जाते हैं। और वहां ऊपर सुदामा चने खाने लगते हैं, तभी कृष्ण को कुछ खाने की आवाज आती है। और कृष्णा पूछते हैं। आरे क्या खा रहे हो क्या?

सुदामा कहते हैं नहीं यह तो सर्दी के मारे मेरा दांत कट कट रहा है। यह सुनकर कृष्ण कहते हैं अच्छा ज्यादा सर्दी हो गई है क्या? सुदामा कहता है हां हां। यह सुनकर कृष्ण भी कहते हैं हां हां मुझे भी बहुत ही ज्यादा सर्दी हो रही है। अभी जो गुरु माता ने चैन दिए थे हम दोनों को खाने के लिए उसमें से कुछ मुझे भी दे दो।

कृष्ण की यह बात सुनकर सुदामा कहता है नहीं तो मेरे पास कैसे चने है। पेड़ पर चढ़ते समय वह गिर गया। यह बात सुनकर कृष्ण ने अपनी चमत्कार से चने अपने हाथों में ले आते हैं। और सुदामा से कहते हैं इस बड़े से पेड़ पर फल त नहीं है, पर मेरे पास ये चने है।

यह सुनकर सुदामा पूछते हैं तुम्हारे पास चने कहां से आए, कृष्ण कहते हैं पिछली बार जब गुरु माता ने चैन दिए थे उसमें से कुछ बचा के मैं अभी तक रखा है। लो तुम भी थोड़ा खा लो, सुदामा कहते हैं नहीं मैं नहीं खा सकता। कृष्ण पूछते हैं पर क्यों?

सुदामा रोते-रोते कहते हैं मैं इसका हकदार नहीं हूं, और मैं तुम्हारे मित्रता का भी हकदार नहीं हूं। मैंने तुम्हें धोखा दिया है मुझे माफ कर दो। कृष्ण कहते हैं मित्रता के बंधन में माफी मांग कर मुझे लज्जित मत करो।

और इसके बाद कृष्ण सुदामा को वचन देते हैं। कि जब भी आप खुद को संकट में पाओगे मुझे याद करना मैं अपने मित्रता जरूर निभाऊंगा।

कृष्ण सुदामा की कथा में जब सुदामा की शिक्षा पूर्ण हो जाती है, तब वह अपने ग्राम असमावतीपुर चले जाते है। और वहां भिक्षा मांग कर अपना जीवन व्यतीत करते हैं। समय के चलते-चलते सुदामा का विवाह सुशीला से हो जाती है। ओर हर रोज सुदामा सुशीला से कृष्ण और उनके मित्रता के बारे में बताती रहती है।

सुदामा का द्वारिका गमन

हर रोज सुदामा कृष्ण के बारे में अपनी पत्नी से जिक्र करता था। और एक दिन उनकी पत्नी ने उनसे कहा, अगर आपका मित्र इतना ही लक्ष्मीपति है तो आप क्यों नहीं उनसे सहायता मांगते हैं, इससे हमारी कष्टमय गृहस्ती में थोड़ा सा सुधार आ जाएगा। पर सुदामा को संकोच हो रहा था किंतु पत्नी के जिद के आगे सुदामा भी हार मान गए, और कई दिनों की यात्रा के बाद वह लोग द्वारिका पहुंच गए।

वहां द्वारिका में द्वारपाल ने सुदामा की फटे हुए वस्त्र को देखकर वहां पर रोक लिया। और जब सुदामा ने द्वारपाल को कृष्ण और उनकी मित्रता के बारे में बताते हैं। द्वारपाल आश्चर्य हो जाता है। वह तुरंत ही महल के अंदर जाकर कृष्ण को सारी बात बताता है। महाराज एक ब्राह्मण देवता फटे हुए कपड़े पहन कर आपको अपना मित्र बताता है। और अपना नाम सुदामा कहता है।

जब भगवान कृष्ण द्वारपाल के मुख से सुदामा नाम सुने, तो नंगे पैर ही उन्होंने द्वार की और दौड़े। और सुदामा को देखते ही रोते रोते प्रभु सुदामा को अपने हृदय से लगा लेते है। इसके बाद भगवान कृष्ण सुदामा को आदर पूर्वक महल के अंदर ले जाते हैं। और अपने सिंहासन पर उन्हें बिठाते हैं। उसके बाद रुक्मिणी सन्ग उनके पैर धोते हैं।

krishna or sudama ji ki kahani

स्नान भजन करने के बाद श्रीकृष्ण उनके चरण सेबा करने लगे, और गुरुकुल में बिताए हुए सभी यादे को दोहराने लगे। बातो ही बातो में कृष्ण सुदामा की मित्रता झलक उठी।

इन सभी बातें करने के बाद कृष्ण ने पूछा भाभी ने मेरे लिए कुछ तो भेजा होगा? इस समय सुदामा एक पाटोली को पीछे छुपा रहे थे। भगवान कहने लगे उस दिन चने छुपा रहे थे आज पाटोली छुपा रहे हो। इसके बाद कृष्ण ने सुदामा के हाथों से वह फोटोलि को छीन लिया, और पाटोली में रखा हुआ चावल को खाया। इसके बाद सुदामा ने अपने परिवार के बारे में कृष्ण को बताते हैं, पर अपनी दरिद्रता का जिक्र कृष्ण से नहीं करते हैं।

और उसके दूसरे दिन सुदामा को भजन करके विदाई दी। पर विदाई के दौरान उन्हें कुछ भी नहीं दिया। सुदामा सोचते रहे शायद उन्हें इसी वजह से धन नहीं दिया गया की उन में अहंकार आ जायेगा। यह सभी बातें सुदामा सोचते सोचते जब अपने घर पहुंचे। तो उन्होंने देखा उनकी कुटिया पर एक भव्य महल खड़ा है। और उनकी पत्नी एक महारानी के भांति खड़ी है। यह सभी दृश्य देखकर कृष्ण की मित्र सुदामा के आंखों में आंसू निकल आई। और अपने सभी जीवन को कृष्ण की भक्ति में समर्पण करने की ठान ली। जय श्री कृष्णा

तो ये था Krishna Or Sudama Ji Ki Kahani

हाली में कुछी समय पूर्ब हमने krishna childhood stories के ऊपर भी एक ब्लॉग बनाये थे। जिसे अप्प देख सकते है।

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