Introduction
Jain Dharm In Hindi: जैन धर्म “जैन” शब्द संस्कृत भासा के “जिन” सब्द से बना है, जिसका अर्थ है “विजेता”, यानि की जैन धर्म का अर्थ है “विजेता का धर्म” और ये जेनिजिम का स्तापना भगवान ऋषभदेव और उनके 24 तीर्थंकरों के द्वारा किआ गया था।
जैन धर्म का अर्थ– अपने मन, इच्छाओं और आंतरिक दुर्गुणों पर विजय प्राप्त करना।
जैन धर्म का मुख्य उद्देश्य है, आत्मा की शुद्धि मतलब मोक्ष (मुक्ति) का प्राप्त करना, अहिंसा (हिंसा न करना), सत्य (सच बोलना), अस्तेय (चोरी न करना) और ब्रह्मचर्य (संयम) से रेहेना
जैन धर्म एक प्राचीन धर्म है, जो की श्रमण परंपरा से निकला है। और ये धर्म में ईश्वर को ब्रह्मांड का निर्माता, उत्तरजीबी, या संहारक नहीं माना जाता। जैन धर्म में पुनर्जन्म के सिद्धांत को माना जाता है।
जैन धर्म का ये कुछ हिंदी बिसय पैर ध्यान दीजिये:-
- जैन धर्म में अहिंसा,सत्य,ब्रह्मचर्य,अस्तेय और अपरिग्रह का सिद्धांत को पलब किआ जाता है।
- जैन धर्म में सम्पति का त्याग करना सिखाया जाता है।
- जैन धर्म में ईश्वर को ब्रह्मांड का निर्माता, उत्तरजीबी, या संहारक नहीं माना जाता है।
- जैन धर्म में पुनर्जन्म का सिद्धांत है।
ये Jainsim in hindi लेख के माध्यम से हम आपको आगे जैन धर्म का इतिहास के बारे में अबगत कराये है।
जैन धर्म से सम्बंधित कुछ प्रमुख तथ्य
विषय | विवरण |
धर्म का नाम | जैन धर्म |
शब्द का अर्थ | आत्मा पर विजय प्राप्त करना |
स्थापना काल | लगभग 10,000-7,000 ईसा पूर्व स्तापना हुआ था |
प्रमुख तीर्थंकर | प्रथम भगबान ऋषभदेव आखिरी तीर्थंकर, महाभिर स्वामी 599-527 ईसा पूर्व |
अंतरराष्ट्रीय अनुयायी | भारत के सहित अन्य देशों जैसे अमेरिका, यूरोप, ऑस्ट्रेलिया में भी जैन समुदाय मौजूद हैं। |
धार्मिक ग्रंथ | आगम साहित्य (जिनवाणी) |
लोकप्रिय स्थल | पावापुरी, श्रवणबेलगोला, रणकपुर, माउंट आबू और पलिताना |
दो प्रमुख संप्रदाय | श्वेतांबर (सफेद वस्त्र पहनते हैं) दिगंबर (वस्त्र त्यागकर पूर्ण साधना करते हैं) |
त्योहार | महावीर जयंती और पर्युषण पर्व |
जैन धर्म की उत्त्पति और इसकी कारण
जैनजीम हिस्ट्री इन हिंदी में इतिहास को देखा जाए तो, छटी सप्ताब्धि ईसा पूर्व में भगबान महावीर के द्वारा जैन धर्म का प्रचार किया गया तब जैन धर्म का इतिहास सबके सामने आने लगा। जैन धर्म की उत्पत्ति वैदिक काल से ही किआ गया है।
जैन धर्म की शिक्षाएं 24 तीर्थंकरों के माध्यम से आगे बढ़ा है। जिसमे भगवान ऋषभदेव प्रथम तीर्थकर थे, और भगवान महावीर स्वामी अंतिम तीर्थंकर थे 599-527 ईसा पूर्व में। इनसे पेहेले 23वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ थे, और इनका जन्म 877 ईसा पूर्व में हुआ था।
ऋषभदेव ही वो पहले व्यक्ति थे जिन्होंने समाज को कृषि, व्यापार, और सांसारिक जीवन जीने के साथ-साथ मोक्ष का मार्ग दिखाया।
भगवान महावीर ने ही जैन धर्म में पंचशील सिद्धांत (अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह) की शिक्षा दी। और उन्होंने ही आत्मा की शुद्धि और मोक्ष प्राप्ति की रास्ता दिखाए।
जैन धर्म की उत्पत्ति का कारण?
- कर्मकांडों और ब्राह्मणों के साथ हिंदू धर्म ये संसार में कठोर हो गया था।
- समाज को 4 वर्गों में विभाजित किआ गया था, जहाँ दो उच्च वर्गों को कई विशेषाधिकार प्राप्त थे। और ये सब जन्म के आधार पर किआ जाता था।
- ब्राह्मणों और क्षत्रिय के बिच अनबन।
- अत्याचार के माध्यम से उत्तर-पूर्वी भारत में नई कृषि अर्थव्यवस्था का प्रसार हुआ।
जैन धर्म का सिद्धांत
जैसे की हमने आपको पेहेले भी बताया है, की जैन धर्म का उद्देश्य आत्मा की शुद्धि और मोक्ष का प्राप्ति करना है। जैन धर्म का सिद्धांत व्यक्ति को आत्म-अवलोकन, संयम, और ध्यान के बलबूते पर आत्मा के असली स्वरूप को पहचानने की ज्ञान देती है।
जैन धर्म ( श्रमण धर्म ) में मोक्ष को आत्मा की अंतिम स्वोरूप के रूप में माना गया है। मोक्ष की प्राप्ति तब होता है जब आत्मा सभी कर्मों के बंधन से मुक्त हो जाती है। और जैन धर्म में मोक्ष की प्राप्ति के लिए ये तीन गुणों को अपनाना ही होगा, जिन्हें “त्रिरत्न” कहा जाता है:
ये रहे “त्रिरत्न” का नाम
- सम्यक दर्शन – सत्य देखने का दृष्टिकोण।
- सम्यक ज्ञान – सही और ज्ञान में परिपूर्ण ।
- सम्यक चरित्र – जीबन में सही आचरण के साथ चलिए।
जैन धर्म (अरहंत धर्म) का पाँच सिद्धांत (पांच महाब्रात)
- अहिंसा – जीबन में किसी को भी हानि न पहुँचाने का संकल्प।
- सत्य – हर समय सत्य बोलना और सत्य के मार्ग पर चलने का संकल्प।
- अस्तेय – कभी भी चोरीना करने का संकल्प।
- ब्रह्मचर्य – हमेशा इंद्रियों पर संयम करना और ब्रह्मचर्य का पालन करना।
- अपरिग्रह – भौतिक वस्तुओं का त्याग।
जैन धर्म में अनेकांतवाद और स्यादवाद
अनेकांतवाद
- अनेकांतवाद का अर्थ ये है की, कोई भी विषय को विभिन्न दृष्टिकोणों से देखना। जैन धर्म का सिद्धांत सिखाता है कि सत्य को समझने के लिए एक अलग प्रकार का दृष्टिकोण का आवश्यक होता है।
- किसी भी चीज़ को अन्य दृष्टिकोणों के साथ जोड़कर समझने की कोशिश सहिष्णुता और आपसी सम्मान को बढ़ावा देता है।
- सम्यक धर्म के अनेकांतवाद के सिद्धांत पर ये कहा गया है कि हर एक संस्थाओं के तीन पेहलु होते हैं: 1 – द्रव्य, 2 – गुण,3 – पर्याय।
स्यादवाद
- कोई भी संभावनाओं की जाँच करने की विधि को स्यादवाद कहा जाता है।
- अरहंत धर्म में स्यादवाद का सिद्धांत के पीछे भगबान महावीर का एक बड़ा योगदान था।
- स्यादवाद का अर्थ – ज्ञान सीमित और सापेक्ष है सभी को ईमानदारी से अपने ज्ञान के असीमित और अप्रश्नेय होने के निरर्थक दावों से बचना चाहिये।
जैन धर्म के सम्प्रदाय
जैन धर्म (अरहंत धर्म) में समय के साथ विभिन्न संप्रदाय और उपसंप्रदाय विकसित हुए हैं, पर इसके प्रमुख संप्रदाय है: दिगंबर और श्वेतांबर।
जैन धर्म की इतिहास की बात करे तो जब मगध की कार्य काल के समय में 12 वर्षों के अकाल भुखमरा आया, तब जैनजिम की एक गोष्ठी को दक्षिण भारत में स्थानांतरित होने के लिये मजबूर किया गया। और 12 बर्स के दौरान मगध पे एक नाइ प्रथा का जन्म हो चूका था, और जब भुखमरा ख़तम हुआ तब दक्षिणी समूह मगध में वापस आया, और तब से बदली हुई प्रथाओं के कारन जैन धर्म को दो संप्रदायों में विभाजित कर दिया गया।
दिगंबर:
दिगंबर संप्रदाय के हिसाब से, मोक्ष प्राप्ति करने के लिए पूर्ण वैराग्य और नग्नता अनिवार्य है। “दिगंबर” का अर्थ है “आकाश वस्त्रधारी” मतलब जो वस्त्र धारण नहीं करता। ये सम्प्रदाय की लोक मानते हैं कि मोक्ष प्राप्ति करने के लिए भौतिक वस्तुओं और इच्छाओं का त्याग करना पड़ेगा।
दिगंबर संप्रदाय की विशेषताएँ:
- नग्नता का पालन: दिगंबर सम्प्रदाय में मुनि रुसिओ ने वस्त्र धारण नहीं करते।
- आहार: दिगंबर संप्रदाय में मुनि भिक्षा के माध्यम से भोजन ग्रहण करते हैं।
- ग्रंथ: “समयसार,” “तत्त्वार्थसूत्र,” और “प्रस्थानत्रयी” दिगंबर सम्प्रदाय का मूल ग्रन्थ हैं।
- मोक्ष: ये संप्रदाय में महिलाओं के लिए मोक्ष प्राप्ति संभव नहीं मानी जाती; मोक्ष प्राप्ति के लिए उन्हें पुरुष रूप में जन्म लेना पड़ेगा।
श्वेतांबर:
श्वेतांबर संप्रदाय की इतिहास की बात की जाए तो, ये जैन धर्म का दूसरा संप्रदाय है। इस संप्रदाय के लोक सफेद वस्त्र धारण करते हैं, और इसीलिए ही इन्हें “श्वेतांबर” कहा जाता है। और खास बात ये है की ये संप्रदाय में मोक्ष की प्राप्ति के लिए नग्नता आवश्यक नहीं मानी जाती।
श्वेतांबर संप्रदाय की विशेषताएँ:
- वस्त्र धारण: जैन धर्म में श्वेतांबर सम्प्रदाय सफेद वस्त्र धारण करते हैं।
- आहार: ये सम्प्रदाय में मुनि रुसिओ ने पात्र में भोजन ग्रहण करते हैं।
- महिलाओं का मोक्ष: जैन धर्म के इस संप्रदाय में महिलाओं के लिए भी मोक्ष प्राप्ति करना संभव मानी जाती है।
- ग्रंथ: “आगम साहित्य” और ये जैन धर्म के शिक्षाओं का संग्रह है।
बिस्वो में जैन धर्म का जनसंख्या
हम ये हिंदी लेख के माध्यम से ये समाज को बताना चाहते है की, 2025 में जैन धर्म की वैश्विक जनसंख्या 40 से 50 लाख (4-5 मिलियन) के बीच ही रहे सकता है। जैनजिम रिलिजन का सबसे बड़ी जनसंख्या भारत में रहती है, 2011 में एक जनगणना की गई थी, और इसके अनुसार कुल जनसंख्या का लगभग 0.4% (लगभग 45 लाख) ही जनसंख्या हैं।
भारत देश के सहित, जैन समुदाय संख्या संयुक्त राज्य अमेरिका, केन्या, यूनाइटेड किंगडम और कनाडा जैसे देशों में भीदेखने को मिलता है।
जैन धर्म की जनसंख्या जितना होना चाहिए उसके अपेक्षाकृत स्थिर और कम है, और इसी मूल्याङ्कन को नजर में रखते हुए ही कहा गया है, 2025 में भी जैन धर्म की वैश्विक जनसंख्या 4-5 मिलियन के आसपास ही बनी रहेगी।
जैन धर्म के साहित्य
जैन धर्म के संस्थापिक ने कई साहित्य की रचना की है, जो मुख्यतः जैन धर्म के सिद्धांतों, दर्शन, और आध्यात्मिक मार्गदर्शन कराते हैं। और ये ग्रन्थ और साहित्य दिगंबर और श्वेतांबर सम्प्रदाय के अनुसार अलग अलग किआ गया है। आगे देखिये,
जैन धर्म में आगम ग्रंथों को सबसे उचा दर्जे के रूप में माना गया है। भगवान महावीर के उपदेशों का संग्रह हैं ये सभी ग्रन्थ। और इन सभी ग्रन्थ को जैन धर्म के पवित्र ग्रंथ आगम के रूप में भी माना जाता है। आगम साहित्य को भी दो श्रेणी में भाग किआ गया है।
अंग-अगम:
अंग-अगम साहित्य का संकलन गणधरों ने किया था।
अब ये गणधरों कोण है?
भगवान महावीर के तत्काल शिष्यों को गणधर कहा जाता था।
सभी गणधर ने भगवान महावीर के उपदेश को बारह मुख्य ग्रंथों (सूत्रों) में संकलित किया। और इन सभी ग्रंथों को अंग-अगम नाम दिआ गया है।
अंग-बह्य-अगम (अंग-अगम के बाहर):
अंग-बह्य-अगम को भिक्षु श्रुतकेवलिन द्वारा संकलित किया गया था।
ज्यादा से ज्यादा दस पूर्व ग्रंथों का ज्ञान जो रखता था उसे भिक्षु श्रुतकेवलिन केहेते थे।
भिक्षु श्रुतकेवलिन ने अंग-अगम का विस्तार करते हुए कई ऐसे ग्रन्थ (सूत्र) लिखे, इन सभी ग्रन्थ को अंग-बह्य-अगम कहा जाता है।
जैन धर्म साहित्य की विशेषताएं
- अहिंसा और सत्य का संदेश।
- आत्मा की मोक्ष प्राप्ति के उपाय।
- संसार में लौकिक और परलौकिक जीवन का विश्लेषण।
- बिस्वो में वैज्ञानिक दृष्टिकोण, जैसे ब्रह्मांड का विवरण, जीव-जंतु वर्गीकरण।
जैन धर्म के परिसद
दो संप्रदायों, जैसे की श्वेतांबर और दिगंबर, इन दोनों के बिच बिचार बीमर्स करने के लिए जैन परिषदें गठन किआ गया था। इनमे मुख्य परिषदें है,
1- प्रथम जैन परिषद
2- द्वितीय जैन परिषद
1- प्रथम जैन परिषद
जैन धर्म की इतिहास में, पहली जैन परिषद मगध की पाटलिपुत्र में तीसरी सदी पूर्ब में आयोजन किआ गया था। जिसका उद्देश्य था भगबान महावीर स्वामी के उपदेशों को संकलित और धर्मग्रंथों को संरक्षित करना। और ये परिषद में जैन आगम साहित्य को व्यवस्थित रूप दिया गया।
2- द्वितीय जैन परिषद
और बात करे द्वितीय जैन परिषद की इतिहास की तो इसे 512 ईस्वी में वल्लभी में आयोजित किया गया था और इसकी अध्यक्षता देवर्षि क्षमाश्रमण ने की थी। इसी के साथ ये परिषद 12 अंग और 12 उपांगों का अंतिम संकलन।
जैन धर्म से जुडी कला और संस्कृति
अगर बात की जाए भारत में जैन कला और संस्कृति की, तो भारत में जैन धर्म एक प्राचीनतम धार्मिक परंपरा है। और इसे जुड़ी कला और संस्कृति अपनी सूक्ष्मता, सौंदर्य और गहन आध्यात्मिक अर्थ के लिए जानी जाती है।
जैन धर्म में मंदिर वास्तुकला:
- जैन धर्म की इन सभी मंदिरों में नक्काशी, स्थापत्य और भव्यता का उत्कृष्ट प्रदर्शन देखने को मिलता है।
- जैसे की दिलवाड़ा मंदिर, माउंट आबू (राजस्थान में) ये मंदिर बारीक नक्काशी और सौंदर्यपूर्ण गुम्बदों के लिए प्रसिद्ध है।
- रणकपुर मंदिर, राजस्थान: यह मंदिर 1444 स्तंभों वाले जैन मंदिरों में से एक है।
- गोमतेश्वर प्रतिमा, श्रवणबेलगोला (कर्नाटक): भगवान बाहुबली की 57 फीट ऊंची प्रतिमा, जो अखंड पत्थर से बनी हुई है।
जैन धर्म में मूर्तिकला:
- जैन धर्म की सभी मूर्तिकला में तीर्थंकरों की शांति, ध्यान और साधना को दर्शाने के लिए विशेष ध्यान दिया गया है।
- सभी मूर्तियां आमतौर पर ध्यानमग्न मुद्रा में होती हैं, जो आत्मिक शांति और अहिंसा के संदेश को प्रतिबिंबित करता हैं।
जैन धर्म में चित्रकला:
- जैन धर्म का बर्णन में हस्तलिखित ग्रंथों का भी विशेष महत्व है।
- कालेवड़ा चित्रशैली (राजस्थान) और पाटन की लघुचित्रकला ये दो स्तान जैन धर्म की चित्रकलाओं में प्रसिद्ध हैं।
- कल्पसूत्र और तत्त्वार्थसूत्र, जैसे जैन ग्रन्थ में जटिल और रंगीन चित्रण का उपयोग किया गया है।
जैन धर्म का पतन का कारन
देखा जाए तो जैन धर्म का पतन के पीछे कई कारन है, जैसे की
मुस्लिम आक्रमण और मंदिरों का विनाश
- सदियों पहले मुस्लिम आक्रमणकारियों के द्वारा जैन धर्म के मंदिरों और शैक्षणिक संस्थानों को नष्ट किया गया।
- मंदिरों का विनाश: रणकपुर, दिलवाड़ा और अन्य प्रमुख जैन स्थलों पर आक्रमण हुए।
बौद्ध धर्म और हिंदू धर्म का प्रभाव
- हिंदू धर्म का पुनरुत्थान: इतिहास को देखा जाए तो आदि शंकराचार्य और अन्य सुधारकों ने हिंदू धर्म को पुनर्जीवित किया, और जिसकी बजह से जैन धर्म की लोकप्रियता कम होने लगा।
- भक्तिकाल का उदय: भारत देश में मध्यकाल के समय में हिंदू धर्म के भीतर भक्ति आंदोलन ने लोगों का ध्यान आकर्षित किया। पर जैन धर्म में भक्ति का अभाव था, जिसकी कारन आम जनता के लिए जैन धर्म के प्रति बिस्वास कम होने लगा।
- बौद्ध धर्म का प्रचार: बौद्ध धर्म ने समाज के लोगो को सरल और व्यावहारिक सिद्धांतों के माध्यम से जनता को आकर्षित किया।
जैन धर्म में आंतरिक विभाजन
- जैन धर्म में कुछ संप्रदायों थे जिनका उभरना इसके पतन का एक प्रमुख कारण था।
- श्वेतांबर और दिगंबर: जैन धर्म दो संप्रदायों में विभाजित हुआ था। और इन संप्रदायों के बीच के मतभेद ने ही जैन धर्म की एकता को कमजोर किया।
देखिये हम कहना चाहते है, हमने जैन धर्म के बारे में कई रिसर्च करने के बाद ये सब जानकारी इकठा करके, जैन धर्म इन हिंदी में लिखे है। अगर आपको जैनजीम का हिंदी लेख पसंद आइ तो इसे शेयर कीजिये, और लोको को जैन धर्म इन हिंदी के बारे में जानने का मौका दीजिये।
जैन धर्म और बुद्ध धर्म के बिच अंतर क्या है?
ये कुछ कारन जैन धर्म धर्म को अलग करता है।
- जैन धर्म वर्ण व्यवस्था को निंदा नहीं करता है , पर बौद्ध धर्म वर्ण व्यवस्था को निंदा करता है।
- जैन धर्म ने ईश्वर के अस्तित्व को मान्यता दी, पर बौद्ध धर्म ने ईश्वर के अस्तित्व को मान्यता नहीं दी।
- जैन धर्म सभी को कपड़े यानी जीवन को पूरी तरह से त्यागने की सलाह दिआ। और बुद्ध धर्म ने मध्यम मार्ग निर्धारित किया।
- जैन धर्म हिन्दुसिम के सामान आत्मा के पुनर्जन्म में विश्वास करता है,पर बौद्ध धर्म आत्मा के पुनर्जन्म में बिस्वास नहीं करता है।
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निष्कर्ष
जैन धर्म, अहिंसा, सत्य, अपरिग्रह और ब्रह्मचर्य जैसे आदर्शों का एक प्राचीन और महान धर्म है। जैन धर्म की सिद्धांत केहेता है की आत्मा की शुद्धि और मोक्ष की प्राप्ति ही जीबन का लक्ष्य है। भगवान महावीर के उपदेश हमें सिखाते हैं कि जीवन में सह-अस्तित्व, करुणा और आत्मसंयम का कितना महत्व है किसीके जीबन में। अभी के समय में, जैन धर्म का संदेश मानवता के लिए एक प्रेरणा स्रोत है, जो हमें सादगी, पर्यावरण संरक्षण और दूसरों के प्रति संवेदनशीलता मार्ग पर चलने के लिए प्रेरणा देती है। जैन धर्म एक ऐसा मार्ग है जो आत्मा को सच्ची मुक्ति की ओर ले जाता है।