Rath Yatra Story In Hindi: यह यात्रा यानी कि जगन्नाथ रथ यात्रा की एक पौराणिक कथा है। एक बार क्या हुआ ना सुभद्रा को नगर भ्रमण की इच्छा हुई तो भगवान जगन्नाथ ने बहन की इच्छा पूर्ण करने हेतु एक रथ यात्रा का आयोजन किया, जिसमें भगवान जगन्नाथ,बदभद्र और सुभद्रा भ्रमण के लिए गए, और भ्रमण के दौरान गुंडेचा मंदिर भी गए और वाहा 7 दिन तक रुके, और तब से लेकर आज तक रथ यात्रा को हर साल भगवान की भ्रमण की स्मृति में आयोजित की जाती है ।
इसी साल 2025 में 26 से 27 जून सुक्रबार तक ओडिशा के पूरी में जगन्नाथ रथ यात्रा पर्व पालन किया जाएगा।
रथ यात्रा भारत देश सहित विश्व भर में प्रसिद्ध है। लाखों करोड़ों लोग इसी दिन जगन्नाथ का नाम जप जब करके जीवन की सभी पापों से मुक्ति हो जाते हैं, और भगवान से आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।
इस जगन्नाथ रथ यात्रा का महत्व, Rath Yatra Story In Hindi में जानने के लिए इस लेख से जुड़े रहिए।
जगन्नाथ रथयात्रा ( Jagannath Rath Yatra )
रथ यात्रा की पर्व एक प्रमुख हिंदू त्यौहार है जो कि हर साल उड़ीसा राज्य में पालन किया जाता है। जिसमें तीनों देवताओं को विशाल रथ में खींचते हुए श्रीमंदिर से गुंडिचा मंदिर तक 3 किलोमीटर ले जाया जाता है, जहां महाप्रभु एक सप्ताह तक आराम करते हैं और उसके बाद वापस श्रीमंदिर लौट आते हैं। हजारों लाखों भक्त इस यात्रा में भाग लेते हैं, और भगवान का नाम जप करके पुण्य कमाते हैं।

हमारे हिंदू धर्म में जगन्नाथ रथ यात्रा का उल्लेख स्कंद पुराण के वैष्णव खंड के पुरुषोत्तम क्षेत्र महात्म्य में वर्णन किया गया है। और इस ग्रंथ के हिसाब से पहली बार रथ यात्रा सत्ययुग में हुई थी। भारत में श्री चैतन्य महाप्रभु ने जगन्नाथ मंदिर को द्वारिका के समान और गुंडिचा मंदिर को वृंदावन के समान माना है। चलिए आगे रथ यात्रा की कहानी को विस्तार से जानते हैं।
जगन्नाथ रथयात्रा की कहानी हिंदी में( Jagannath Rath Yatra Story In Hindi )
हमारे हिंदू धर्म में रथ यात्रा की कहानी की बात करें तो जगन्नाथ रथ यात्रा की कई अलग-अलग कहानी प्रचलित है। पर आज हम आप सभी के साथ विस्तार से चर्चा करेंगे अधिक प्रचलित rath yatra story जो कि स्कंद पुराण में वर्णन किया गया है।
कहानी आरंभ: सतयुग के समय में उज्जैन नगरी में एक राजा हुआ करते थे, जिनका नाम इंद्रधूम्र था और उनकी पत्नी का नाम गुंडिचा था। राजा चाहते थे की मृत्यु से पहले एक बार भगवान के दर्शन करे, और उसी समय उन्हें कहीं से भगवान नील माधव विग्रह के बारे में पता लगता है, सुनने को आया था कि उनके दर्शन मात्र ही मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है। और इसी बात से राजा के मन में भी उनके दर्शन करने की इच्छा जागी, जिससे कि राजा पुरोहित के पुत्र विद्यापति और अन्य सेवकों को नील माधव विग्रह की पता लगाने के लिए भेजा, और उन्हें आदेश दिया कि 3 महीने के भीतर ही लौट आना। पर उसके 3 महीने के बाद विद्यापति के अलावा सभी सेवक लौट आए पर विद्यापति नहीं लौटे। क्या हुआ विद्यापति के साथ आगे जाने।
विद्यापति दिन-रात नील माधव की खोज करते हुए एक गांव में पहुंच जाते हैं, और उस गांव के मुखिया विश्वाबसु की अतिथि बनकर रहने लगते हैं। समय के साथ गांव की मुखिया की बेटी के साथ उनकी विवाह हो जाती है, और बाद में उन्हें पता चलता है कि विश्वाबसु भी नील माधव की एक बड़े भक्त थे, और वह रोज उनकी पूजा करने के लिए जाते थे। यह बात जानकर विद्यापति भी नील माधव की दर्शन की अभिलाष व्यक्त की।
पर विश्वाबसु नहीं माने, किंतु उनकी पुत्री की जिद देखकर उन्होंने कहा ठीक है, विद्यापति को नील माधव की दर्शन करवाएंगे लेकिन एक शर्त पर, विद्यापति की आंखों में पट्टी बांधकर नील माधव के पास ले जाया जाएगा, ताकि उन्हें नील माधव की बास स्थान का पता ना चले। पर विद्यापति चालक था, उसने एक योजना बनाई कि जाते वक्त सरसों के दाने पूरे मार्ग में बिखरते जाएंगे ताकि बाद में मुझे रास्ता का पता चल पाए।
और जैसे तैसे करके विश्वाबसु ने नील माधव के दर्शन पाने में सक्षम हो जाती है, और बाद में राजा इंद्रद्युम के पास जाकर उन्हें सारी सच्चाई बता देते हैं। और इसके बाद राजा नील माधव के दर्शन के लिए निकल जाते हैं, पर आश्चर्य की बात यह है कि उस जगह पर नील माधव नहीं थे, इसी बात पर क्रोधित होकर राजा ने विश्वाबसु के सहित सभी लोगों को बंदी बना लिया, और अपनी प्राण त्यागने का निश्चय कर लिया। और इस वक्त ही कुछ न होने वाली चीज हुई, भगवान ने स्वयं उन्हें दर्शन देकर कहा राजन मैं तुम्हें नील माधव के रूप में नहीं बल्कि जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा के रूप में दर्शन दूंगा। और राजन को रास्ता दिखाते हुए भगवान ने कहा, मैं बंकिम मोहना के पास दारूकोब्रह्म लकड़ी के रूप में वाहा पाऊंगा जिस पर शंख, चक्र, गदा और पदम चिन्ह बने होंगे। तुम्हें बस आदेश दिया जाता है कि तुम उस लकड़ी को वहां से निकाल कर उसकी चार विग्रह बनाकर मंदिर में स्थापित करके मेरी पूजा करना।
इसके बाद राजा इंद्रधूम्र ने भगवान के आदेश से एक विशालकाय मंदिर बनाया। और सही समय का इंतजार किया, और अंत में वह समय आ ही गया, दारूकोब्रह्म समुद्र से बहकर आए जिससे कि समुद्र से निकाला गया और मूर्तियां बनवाने का आदेश दिया गया।
पर मूर्तियां बनवाएगा कौन?
उस समय विश्वकर्मा नामक एक प्रमुख बढ़ाई थे, इन सभी विवाद के बीच विश्वकर्मा ने कहा मैं बनाऊंगा मूर्ति पर मेरी कुछ शर्त है। और शर्त यह है कि मैं अकेला 21 दिन तक मंदिर के अंदर रहकर बिना खाए- पिए मूर्तियां बनाऊंगा, और यदि इन समय के बीच किसी ने भी दरवाजा खोल दिया तो मैं यह काम अधूरा छोड़ कर ही चला जाऊंगा। इसके बाद राजा इंद्रधूम्र उनकी बात मान गए और मूर्ति का निर्माण कार्य आरंभ हुआ।
21 दिन में से पहले कुछ दिन कई सारे आवाज़ सुनाई देती थी, पर 14 दिन के बाद आवाज आना बंद हो गया, जिसे की रानी गुंडीचा डर गई शायद भजन और जल ना प्राप्त करके बढ़ई की मृत्यु हो गई होगी। और इन्हीं बात से परेशान होकर रानी ने दरवाजा खोलने का आदेश दिया, और जैसे ही दरवाजा खोला गया वहां अधूरी मूर्तियां दिखाई दी मगर बढ़ाई वहां पर नहीं देखा। यह देखकर राजा को बहुत ज्यादा दुख हुआ, तभी आकाशवाणी हुई और कहा गया, राजन में सभी भक्तों के आगे इसी रूप में प्रकट होना चाहता था इसलिए मेरे इन्हीं विग्रह को मंदिर में स्थापित किया जाए। और फिर राजन ऐसा ही करते हैं। और फिर से भविष्यवाणी हुई की साल में एक बार भगवान जगन्नाथ अपने गृह नगर मथुरा जाएंगे। और इसी आदेश का पालन करने हेतु हर साल रथ यात्रा का आयोजन किया जाता है। यह था रथ यात्रा की कहानी, रथ यात्रा की कथा
रथ यात्रा का महत्वो ( Importance Of Rath Yatra )
अगर बात करें विश्व प्रसिद्ध भगवान जगन्नाथ रथ यात्रा की महत्व का, तो सुनिए हमारे हिंदू धर्म की पुराणों में भी कहा गया है कि जो कोई भी भक्त रथ यात्रा में हिस्सा बनता है, और इस दौरान प्रभु जगन्नाथ के दर्शन कर पाता है, उसके सभी पाप चाहे वह पाप कैसे भी हो, भगवान के दर्शन के कारण हेतु उन सभी पापों का नास हो जाता है। और यह भी कहा गया है कि संसार के सभी दुखों और जन्म मरण के चक्र से मोक्ष की प्राप्ति मिल जाती है। आगे जाने रथ यात्रा की परंपरा के विषय में।
रथ यात्रा की परंपरा क्या है?
हमारे भारतीय संस्कृति में जेष्ठ माह की पूर्णिमा को जगन्नाथ पुरी का अवतरण माना गया है। इसी दिन क्या होता है ना, प्रभु जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा को श्री मंदिर से स्नान मंडप में ले जाया जाता है, और 108 कलश से प्रभु को स्नान कराया जाता है। जिससे कि भगवान 15 दिनों तक बुखार से पीड़ित रहते हैं। इसी वजह से प्रभु असर घर में रहते हैं, जो की एक विशेष तरह का कमरा होता है।

और इन 15 दिनों में पुजारी के अलावा किसी को भी भगवान के दर्शन करने की अनुमति नहीं दी गई है। और फिर 15 दिन के बाद यौवन नेत्र उत्सव के दिन प्रभु जगन्नाथ को उस कक्षा से निकलते हैं। और फिर उसके बाद शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को प्रभु अपने भाई बलभद्र और सुभद्रा के साथ रथ में सबार होकर घूमने के लिए निकलते हैं।
मजार पर रुकता है भगबान जगन्नाथ का रथ
मजार पर रथ को रोकने के पीछे एक कहानी है। कहां जाता है कि जहांगीर के वक्त एक सूबेदार ने ब्राह्मण विधवा महिला से शादी कर ली थी, और इन दोनों का मिलन से एक पुत्र संतान भी था। सालबेग की भगवान जगन्नाथ के प्रति काफी अटूट भक्ति था। लेकिन वह मंदिर में प्रवेश नहीं कर पाते थे।
कहां जाता है कि सालबेग काफी दिन वृंदावन में भी रहे, और रथ यात्रा में शामिल होने उड़ीसा भी आए पर वह बीमार पड़ गए, जिस कारण वो भगवान जगन्नाथ का दर्शन नहीं कर पाए। फिर सालबेग ने भगवान की दर्शन के लिए मन में ही इच्छा जताई। जिसे की भगवान जगन्नाथ खुश हो गए और रथ यात्रा की समय में रथ खुद ही सालबेग की कुटिया के सामने रुक गई। उसी दिन सालबेग को भगवान की दर्शन मिला। दर्शन देने के बाद ही भगवान जगन्नाथ का रथ आगे बढ़ा। और भगवान जगन्नाथ की ये लीला आज भी चली आ रही है ।
रथ यात्रा से सम्भंदित तथ्य:
आड़प दर्शन
जब भगवान जगन्नाथ के रथ 3 किलोमीटर की दूरी पार करके गुंडिचा में पहुंचती है, और अगले 7 दिन तक इस मंदिर में भगवान जगन्नाथ विराजमान करते हैं। इसी दौरान गुंडिचा मंदिर में भगवान की सभी भक्त दर्शन के लिए आते हैं, और इसे ही आड़प दर्शन कहा जाता है।
गुंडिचा मार्जन
भगवान जगन्नाथ की रथ पूरी से निकलने से पहले गुंडिचा मंदिर को सभी भक्त मिलकर भगवान जगन्नाथ की आने की खुशी में साफ सफाई करते हैं, इसे ही गुंडिचा मार्जन कहते हैं।
बाहुड़ा यात्रा
रथ यात्रा की समाप्ति के दिन यानी कि नौवे दिन पुनः भगवान जगन्नाथ का रथ पुरी मंदिर में वापस आती है। परंतु मूर्तियां सारी एकादशी से पूर्व रथ में ही रहती है। एकादशी के बाद पुनः भगवान जगन्नाथ,बलभद्र और सुभद्रा को स्नान करा के मंत्र के द्वारा मंदिर में प्रतिष्ठित किया जाता है। ये कार्य को बाहुडा यात्रा कहा जाता है ।
2025 रथ यात्रा तारीख ( Rath Yatra Date )
2025 में भगबान विष्णु के स्वरुप जगन्नाथ जी का रथ यात्रा का आयोजन किआ गया है। इसी साल 2025 में रथ यात्रा 26 जून से सुरु होकर 27 जून तक चलेगी। इस यात्रा में दुनिआ से लाखो, करोड़ लोग शामिल होने के लिए आएंगे, और भगबान की दर्शन करके कृपा प्राप्त करेंगे।
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1-जगन्नाथ का रहस्य क्या है?
मान्यता है की प्रभु जगन्नाथ की दर्शन करने से सारि मन बांचा पूर्ण होता है। और ये भी कहा गया है की आपकी मर्जी स आप भगबान की दर्शन नहीं कर सकते, भगबान की बुलाबा आने पर ही, अप्प जगन्नाथ का दर्शन कर सकते हो।
2-जगन्नाथ मंदिर की 22 सीढ़ी का रहस्य क्या है?
माना जाता है की जगन्नाथ मंदिर में ये जो 22 सीढिआँ है, ये मानब सीबन की 22 कमजोरियों या बुराइयों का प्रतिक है।
3-जगन्नाथ मंदिर का झंडा उलटा क्यों लेहेरता है?
हमेसा पूरी जगन्नाथ मंदिर में मंदिर की धुजा हवा की बिपरीत दिशा में लेहेरता है। जो भगबान के प्रति सन्मान और भक्ति को दर्शाता है।
4-जगन्नाथ मंदिर के चमत्कार क्या है?
मंदिर की चमत्कार की बात करे तो दिन की किसी भी समय में मंदिर की परछहि नहीं बनती। और ये मंदिर इतनी उची होने के बाबजुत आज तक कभी भी मंदिर के ऊपर एक भी पक्षी नहीं उड़े है।
5-जगन्नाथ पूरी की तीसरी सीढ़ी पर पैर क्यों नहीं रखते है?
जगन्नाथ मंदिर की तीसरी सीढ़ी को यमसीला कहा जाता है। इसके ऊपर पैर रखने से जीबन की सभी पुण्य ख़त्म हो जाते है, और यमलोक जाना पड़ता है।
निस्कर्स
आज की इस लेख के माध्यम से हमने आप सभी के साथ रथ यात्रा के बारे में चर्चा की है। और उसके साथ साथ rath yatra story in hindi और रथ यात्रा की कहानी के बारे में जाना। इस तरीकेकी बिसय का ज्ञान लेने के लिए हमारे साथ जुड़े रहिये।