Is Ramayana Real?
हां, रामायण को सत्य माना जाता है।
लाखो लोग और भक्तो के लिए रामायण दिब्य सत्य है। जो की संसार में लोगो को जीबन जीने की और धर्म की पथ का मार्गदर्सन कराता है। हिन्दू धर्म में कई ऐसे काहानी है जो की इस समाज को जीबन जीने का एक नई राह दिखती है। जैसे कृष्ण लीला, शिव पार्वती विवाह कथा।और हिन्दुधर्म की ग्रंथ में रामायण के साथ महाभारत जैसे पबित्र ग्रंथो को भी एक उचा दर्जा दिआ गया है।
वही दूसरे तरफ वैज्ञानिक और इतिहासकारो ने रामायण की घटना और एतिहासिक प्रमाणों की खोज में लगे हुए है। और कई सबूतों की बजह से रामायण की सत्यता पर एक नया दृस्टीकन जन्म लिआ है, चलिए उस पर बात करते है।
रामायण के कुछ खास बातें :
1- रामायण में भगबान राम की आदर्श जीबन, माता सीता की त्याग और उनके संघर्ष की गाथा दर्शाया गया है।
2- रामायण की रचयिता महर्षि बाल्मीकि है। जिन्हे ‘ आदिकबि ‘ भी काहा जाता है।
3- रामायण को आदिकाब्य कहा जाता है। जिसमे की लगभक 24,000 श्लोक है।
4- रामायण में सात अध्याय है जिसे कांड काहा जाता है।
5- आज भी रामायण में बर्णित कई जगह मजूद है।
Ramayana में की गई वैज्ञानिक और पुरातात्विक अनुसन्धान
इन सभी बिसय पैर ध्यान से नजर डाले।
1- पुरातात्विक अनुसन्धान
2-खगोलीय डेटिंग
3-भूवैज्ञानिक अनुसन्धान
4-आनुवंशिक अध्ययन
5- वानस्पतिक अध्ययन
6- भाषाई और साहित्यिक अध्ययन
7- सांस्कृतिक प्रभाव
8- दार्शनिक और नैतिक अध्ययन
9- सैटेलाइट और रिमोट सेंसिंग टेक्नोलोजी
10- मानवशास्त्रीय अनुसंधान
1- पुरातात्विक अनुसन्धान
रामायण को महर्षि बाल्मीकि द्वारा आज से लगभक 300 BCE सेंचुरी पेहेले लिखा गया था। और रामायण की रिसर्च करने के बाद कई प्रमाण सामने आई है जो इस प्राचीन इतिहास की पृस्ति करता है।
1- अयोध्या ( राम जन्मभूमि )
(ASI) के पूर्ब महानिर्देशक बी.बी. लाल ने 1969-70 के बिच अयोध्या में कई खुदाई किए थे। जिसके दौरान कई मंदिर के स्तम्ब, टेराकोटा मुर्तिया, और प्राचीन सरंचनाओं के अबसेस मिले है। जिसकी जाँच करने पैर ये पता चला है की ये सब चीजे 17बी सप्ताब्धि पूरब के है। जिसे की हमें रामायण की बास्तबिकता के बारे में पता चलता है।
2- लंका ( रावण का महल )
अभी के श्रीलंका जो की प्राचीन काल में लंका के नाम से जाना जाता था, रामायण जैसे महाकाब्य में लंका का जीकर किआ गया है। त्रेत्या युग में रावण ने माता सीता का हरण करके यही लंका में बंदी बना कर रखा था।
लंका का निर्माण सने और कई रत्नो से किआ गया था जिसे की इस महल को स्वर्ण नगरी कहा जाता था, इसे मय दानब ( मयासुर ) के द्वारा निर्माण किआ गया था, ये महल भगबान शिव के कहने पैर रावण को उपहार में दिआ गया था।
भारतीय सरकार द्वारा लंका में की गई पुरातविक अनुसन्धान से कई ऐसे प्रमाण मिलती है, जो रामायण की सचाई को पूरा बिस्वो में बताती है।
कुछ प्रमाण
मंदिर, किलों महल, मिटी का बर्तन, मुर्तिया आभूसन और कई सारे कंकाल जो उस समय मतलब रामायण की जिबनसईली का संकेत देती है। सांस्कृतिक प्रमाण– जैसे की मंदिर और पूजा स्तल,
साहित्यिक प्रमाण– कई सारे ग्रन्थ जैसे की रामायण और महाभारत जिसमे लंका का उल्लेख किआ गया है।
बैज्ञानिक प्रमाण– कार्बन डेटिंग के माध्यम से पाए गए सभी बस्तु का उम्र पता करना, जिओलॉजिकल और डीएनए बिस्लेसन से भौगोलिक परिबर्तन का जानकारी लेना।
3- रामसेतु ( आदम का पुल )
रामसेतु को हिन्दुसिम में भगबान राम और उनकी सेना की लंका यात्रा से जोड़ा जाता है। रामसेतु पुल लगभक 48 किलोमीटर लम्बा है, और इसकी गेहेराई की बात करे त कुछ स्तान पैर इसकी गेहेराई मात्र 3 फुट है, जबकि अन्य स्तान पैर गेहेराई 30 फुट तक है। निचे दिए गए प्रमाणों से अप्प रामसेतु की सचाई से बिमुख हो पाएंगे।
- 2017 में GSI ( Geological Survey of India ) के रिसर्च के मुताबिक पुल की निचे की चटान लगभक 7000 साल पुराणी है।
- बिज्ञान का दाबा ये भी है की यहाँ का ढांचा प्राकृतिक नहीं है, इसमें मानब हस्तखेप की संकेत दिखाई देती है।
- जब धनुसकोड़ी और मन्नार द्वीप के पास कार्बन डेटिंग की रिसर्च की गई, त इसमें पाया गया की ये अबसेस 5000 से 7000 साल पुराना है, और वो समय रामायण का समय था।
इन सभी प्रमाण के बाबजुत अक्सर रामसेतु को लेकर सबाल उठते रेहेते है।
जैसे की 2007 में शिपिंग केनाल प्रोजेक्ट के तेहेत रामसेतु को तोड़ने का प्रयास किआ गया था, बाद में सुप्रीमकोर्ट की हस्तखेप से ये करबाई रोक दी गई, और ये सिलसिला अभी तक ख़तम नहीं हुई, अभी भी रामसेतु को लेकर बेहेस चल रही है।
2-खगोलीय डेटिंग
खगोलीय डेटिंग (Astronomical Dating) के माध्यम से भगबान राम के जीबन, उनके बनबास, माता सीता का हरण जैसे कई घटनाओ का सठिक तिथिआ निर्धारित करने का प्रयास किआ गया है।
जैसे की
1- श्रीराम का जन्म
रिसर्च के मुताबिक बाल्मीकि रामायण के अनुसार, भगबान राम की जन्म पुष्य नक्षत्र में हुआ था। और अलग अलग घटनाओ के आधार पैर भगबान राम की जन्म की तिथि 10 जनबरी, 5114 ईसा पेहेले हुआ था माना गया है।
2- राम सीता की बनबास
रामायण में भगबान राम, माता सीता और लखमन ने 14 बर्स की बनबास के लिए निकले थे, और खोगोलिओ गणनाओ के हिसाब से बनबास की शुरुआत 5 जनबरी, 5075 ईसा पूर्ब में हुआ था, माना गया है।
3- सीता हरण
जब दुस्ट रावण ने माता सीता का हरण किआ, उस समय ग्रहो का सयोंग मिलता है। खोगोलिओ गणनाओ के हिसाब से ये घटना 3 दिसंबर, 5076 ईसा पूर्ब में हुआ था, माना गया है।
इन सभी प्रमाणों के बाबजूद भी कई अंधभक्त रामायण की इतिहास के ऊपर सबाल उठाते है, की क्या रामायण सच में हुआ था।
3-भूवैज्ञानिक अनुसन्धान
रामायण जैसे महाकाब्य में, ना केबल धार्मिक और आध्यात्मिक दृश्टिकोण मिलता है, बल्कि ये भौगोलिक सन्दर्भ को भी प्रकट करता है। महर्षि बाल्मीकि द्वारा रचित रामायण इस संसार में लोगो को जीने की एक रहा दिखती है।
रामायण में की गई भूबैज्ञानिक अनुसन्धान
1- धनुसकोटि का भूबैज्ञानिक अनुसन्धान
धनुसकोटि वो स्तान है, जहा से रामसेतु का निर्माण आरम्भ हुआ था। भूबैज्ञानिक अनुसन्धान के मुताबिक 1964 में चक्रबात के कारन ये नस्ट हो गया था। और इस जागाह के बारे में ये भी कहा जाता है की, यहाँ कभी एक समुद्र नगर हुआ करता था।
भूबैज्ञानिक अध्ययन से ये पता चलता है की, येह क्षेत्र समुद्र के निचे डाब चूका है, जो रामायण में घटित घटनाओ का प्रमाण हो सेकता था।
2- लंका का भूबैज्ञानिक अनुसन्धान
रामायण की लंका की प्रतिछबि बर्तमान श्रीलंका के अनुराधापुर, त्रिनोकोमाली, और सिगिरिया के क्षेत्र से मेल कहती है।
अध्ययन से ये पता चलता है की सिगिरिया में पाई जाने बाले प्राचीन किले, परबत की बनाबट राबन के लंका की किलेबंदी के जैसा दिखता है।
लंका को पुरातन काल में ” सोने की नगरी ” कहा गया है। बर्तमान कुछ अध्ययन किए जाने पैर श्रीलंका में सोने और अन्य कीमती धातुओं का भंडार मिला है।
बाल्मीकि के बिबरन पैर भूबैज्ञानिक अनुसन्धान
महर्षि बाल्मीकि रामायण की रचयिता थे, उनके द्वारा बर्णन बिभिर्न स्तल, आधुनिक भूबिज्ञान से मेल कहती है।
जैसे की
चित्रकूट और पंचबटी: रामायण में बर्णित ये स्तल आज भी बिद्यमान है, और इसकी रूप, स्तिथि रामायण के बर्णन से मेल कहती है।
दंडकारण्य: भूबैज्ञानिक अनुसन्धान के मुताबिक ये क्षेत्र में प्राचीन बस्तिआ और बनस्पति सरंचनाओं का प्रमाण मिला है।
4- जेनेटिक अध्ययन
बाल्मीकि रामायण में भगबान राम और माता सीता की जीवन की घटनाओं, उनके द्वारा की गई संघर्षों, और उनके आदर्शों और मर्यादा का वर्णन किया गया है। हालांकि, इसके बास्तबिकता और धार्मिक पक्ष पर अक्सर व्यापक चर्चा की जाती है, लेकिन अभी अभी कुछ बर्स पेहेले ही इस पर जैविक (Genetic) अध्ययन भी किए गए हैं, जिससे की रामायण से जुड़े रहस्य, घटनाओं और स्थानों के अस्तित्व के बारे में नई समझ विकसित हो रही है।
जैसे की
1- रामायण के औषधि पैर अध्ययन
रामायण में भगबान हनुमान ने लखमन के लिए संजीवनी बूटियों को लेकर आये थे। यह बूटियां मृतप्राय व्यक्ति को जीवित कर सकती थीं। आधुनिक विज्ञान में हर्बल औषधियों और उनकी जैविक क्रियावली पर स्टडीज जारी है, और कुछ रिसर्च यह संकेत देते हैं कि रामायण में वर्णित संजीवनी जैसे पौधे वास्तव में कुछ दुर्लभ औषधीय गुणों से सम्पन्न हो सकते थे।
2- प्राकृतिक और जैविक विविधता
रामायण में अनेक प्रकार के जीव-जंतु, पशु-पक्षी हैं, जो तब की जैविक विविधता को दर्शाती हैं। उदाहरण के लिए, राम के साथ गए बंदर (वानर) और सीता माता का अशोक वाटिका में निवास। जैविक दृष्टिकोण से देखा जाए तो रामायण में जो विविध प्रकार के प्राणी हैं, वे प्राचीन काल में जीवित विभिन्न प्रजातियों की उपस्थिति को प्रमाणित कर सकते हैं।
3- रामायण के स्थल में अध्ययन
रामायण में वर्णित किए गए स्थानों पर भी स्टडीज किआ गया हैं। जैसे अयोध्या, लंका, चित्रकूट, पंपा सरोवर आदि। इन स्थानों में रिसर्च करने के बाद शोधकर्ताओं ने इन स्थानों पर जीवविज्ञान (Biology) और पारिस्थितिकी (Ecology) के दृष्टिकोण से विचार किया है, ताकि यह समझा जा सके कि रामायण में वर्णित स्थल आधुनिक विज्ञान के अनुसार कैसे थे और क्या उनका कोई जैविक आधार था।
5- वानस्पतिक अध्ययन
वनस्पति विज्ञान एक विस्तृत अध्ययन है। देखा जाए तो रामायण जैसे पौराणिक कथा में उन वनस्पतियों का वर्णन मिलता है, जिनका उपयोग चिकित्सा, आहार और तंत्र-मंत्र में किया जाता था। जैसे की तुलसी, आंवला, नीम और संजीवनी बूटी। चलिए जानते है, रामायण में वर्णित विभिन्न वनस्पतियों और उनके वैज्ञानिक अध्ययन के बारे में, जो की हमें रामायण से जुड़े ईतिहासिक तथ्य से अबगत करता है।
1- संजीवनी बूटी की पहचान
रामायण की घटना के इतने साल बाद भी आज तक संजीवनी बूटी की वास्तविक पहचान नहीं हो पाई है, लेकिन कई वैज्ञानिकों मानते है कि यह कोई विशेष पौधा या मिश्रण हो सकता है जिसमें जीवन रक्षक गुण हो। कई रेसेअर्चेर्स का मानना है कि यह पौधा आज के हेमपेस या स्मोक परिवार से संबंधित हो सकता है।
2- तुलसी के गुण
तुलसी के एंटीऑक्सीडेंट गुणों का वैज्ञानिक प्रमाण भी सामने आया है। तुलसी को ना सिर्फ धार्मिक रूप से पवित्र माना गया है, बल्कि इसके औषधीय गुणों ने इसे चिकित्सा की क्षेत्र में भी एक महत्वपूर्ण स्थान दिलाया है।
रामायण में बताया गया है की वनस्पतियों का उपयोग सिर्फ औषधीय उत्तपन करना नहीं है। बल्कि इन सभी पढ़ो का सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व भी है। जैसे की बिल्वपत्र (Bael leaves) भगवान शिव से जुड़ा हुआ है और पुष्पों और फल का उल्लेख विभिन्न धार्मिक अनुष्ठानों में किया जाता है। और कई वनस्पतियों का उपयोग पूजा-पाठ, तंत्र-मंत्र जैसे हिन्दू संस्कृति का हिस्सा हैं।
6- भाषाई और साहित्यिक अध्ययन
रामायण के भाषाई अध्ययन से यह पता चलता है कि महर्षि वाल्मीकि ने संस्कृत भाषा का अत्यधिक समृद्ध और प्रभावी उपयोग किया है। और साथ ही रामायण जैसे पौराणिक कथा को भारतीय साहित्य का पहला महाकाव्य भी माना जाता है।
1- रामायण का भाषाई अध्ययन
रामायण में वाल्मीकि ने संस्कृत भासा की कुछ इस प्रकार से उपयोग किआ जिसे की ये बहुत प्रवाहपूर्ण और सरल हो गया, जिसे की पढ़ने बाले को कोई कठिनाई नहीं आई, इन्होने रामायण में अलंकारों, अनुप्रासों, और काव्यशास्त्रीय का प्रयोग किया है, जिससे रामायण एक काव्य रूप में अमर हो गया।
2- रामायण का साहित्यिक अध्ययन
रामायण में, जैसे भगबान राम, माता सीता, राख्यास रावण, भगबान हनुमान, और लक्ष्मण ने हमारे भारतीय साहित्य में एक अलग प्रकार की स्थान प्राप्त किया है। और आज भी भारतीय समाज में साहित्य, संगीत, और नृत्य के माध्यम से इनकी अमर कथाएँ जीवित हैं। जो की रामायण और पुरातात्विक तथ्य को सामने लता है।
7- सांस्कृतिक प्रभाव
महर्षि बाल्मीकि द्वारा रचित रामायण कई पीढ़ियों से लोगों के जीवन में मूल्य और सांस्कृतिक विरासत को प्रभावित किया है। तो चलिए इस लेख के जरिये हम विस्तार से जानें कि रामायण ने किस प्रकार हमारे समाज और संस्कृति पर प्रभाव छोड़ा है।
1- भारत की कला और साहित्य पर रामायण का प्रभाव
तुलसीदास की रामचरितमानस को भारतीय साहित्य में एक उचे दर्जे का स्तान दिआ गया है। और भारत के विभिन्न हिस्सों में रामायण को भासाओ के आधार पर पुनःरचना किआ गया है, जैसे कंब रामायण (तमिल), आद्यात्म रामायण (संस्कृत), और कृतिबास रामायण (बंगाली)।
रामायण का इतिहास कई बिभिर्न कला जैसे की मूर्ति प्रस्तुत कला, चित्रकला, और नृत्य नाटिकाओं कला में भी अमर हो के रहे गई हैं। भारतीय मंदिरों की दीवारों पर भी रामायण की घटनाएँ का बर्णन किआ गया है।
2- परंपराओं और उत्सवों में रामायण का प्रभाब
रामायण हमारे भारतीय परंपराओं में भी एक अच्छा चाबी छोड़ के गई है जैसे की रामलीला: रामायण की कथा का मंचन देशभर में एक प्रसिद्ध परंपरा है, जिसे की यूनेस्को ने भी Intangible Cultural Heritage का दर्जा दिया है। और इन सभी पर्ब के बजह से भी रामायण की बास्तबिकता सबके सामने अति है।
दीपावली: जब भगवान राम के सहित माता सीता और लखमन ने 14 वर्षों के वनवास के बाद अयोध्या वापसी की उसी ख़ुशी में दीपावली का पर्व मनाया जाता है।
और अन्य त्योहार जैसे दशहरा और राम नवमी रामायण की घटनाओं से प्रेरित हैं।
8- दार्शनिक और नैतिक अध्ययन
रामायण की दार्शनिक अध्ययन से हमें रामायण की सचाई और कई महत्वपूर्ण विषयों के बारे में जानने को मिलती है। जैसे की धर्म, कर्म, सत्य और न्याय, आज हम इस लेख की जरिये से इन सभी बिसय पर बारीकी से चर्चा करेंगे।
1- धर्म का सिद्धांत जानिए
- ये समाज को रामायण के माध्यम से यह सिखाया गया है कि एक ब्यक्ति तभी सफलता हासिल कर सकता है, जब वो अपने धर्म का पालन ईमानदारी से करें।
- भगबान राम ने अपने हर निर्णय में धर्म को सबसे उचे स्तान का दर्जा दिया है। चाहे वह 14 वर्षों का वनवास हो या माता सीता का त्याग करना हो, राम ने हर स्थिति में धर्म का पालन किया।
2- कर्म और कर्मफल सिद्धांत
- रामायण जैसे पौराणिक कथा में यह सिखाया जाता है कि राम ने हमेशा न्यायपूर्ण कर्म किए, और उनके सभी कर्मों का फल सत्य और धर्म के पक्ष में हुआ है।
- कर्म का अर्थ सिर्फ शारीरिक परिश्रम नहीं है। बल्कि ये एक आदमी का मानसिक स्थिति और उसकी नीयत को भी दर्शाता है।
रामायण के नैतिक अध्ययन में जीवन के सर्वोत्तम मूल्यों और आदर्शों को समझने का प्रयास किया जाता है, जो आज भी समाज में मार्गदर्शन प्रदान करते हैं।
9- सैटेलाइट और रिमोट सेंसिंग टेक्नोलोजी
सैटेलाइट और रिमोट सेंसिंग टेक्नोलोजी क्या है?
सौर मंडल में पृथ्वी से दूरी पर स्थित उपग्रहों की मदत से पृथ्वी पर होने वाले परिवर्तनों का निरीक्षण और विश्लेषण करते हैं।
और रिमोट सेंसिंग की बात करे त ये एक प्रक्रिया है, जिसमे की सेंसरों द्वारा प्राप्त किए डेटा का इस्तेमाल किया जाता है, ताकि भूगोल की जानकारी प्राप्त की जा सके
सैटेलाइट और रिमोट सेंसिंग टेक्नोलोजी का दृष्टिकोण
हाली में रामायण में वर्णित किआ गया जगह जैसे अयोध्या, और राम सेतु (रामेश्वरम) जैसे कई और भौगोलिक स्तान का निरीक्ष्यण किया गया है।
जैसे की
रामसेतु का अध्ययन
और रिमोट सेंसिंग के साथ उपग्रह चित्रण के माध्यम द्वारा समुद्र में बने हुए रामसेतु का रेत की टुकड़ो का जाँच किआ गया है। जिसे की रामसेतु की सचाई सबके सामने आ सके। और वैज्ञानिक का भी यही मत है की रामसेतु एक मानब निर्मित पुल है।
अयोध्या की अध्ययन
और अयोध्या की बात करे त रिमोट सेंसिंग के माध्यम से पता चला है की अयोध्या क्षेत्र में प्राचीन सभ्यताओं का बसबास था। कुछ लोग त ये भी मानते है की अयोध्या क्षेत्र में प्राचीन जलाशयों और एक शहरों भी था, जिसे की रामायण के समय के अयोध्या से जोड़ा जाता है। और केहि ना केहि ये सारे सबूत रामायण की बास्तबिकता को सभी लोगो के सामने ला रही है।
10- मानवशास्त्रीय अनुसंधान
Anthropological Research के माध्यम से हम रामायण के पात्रों, समाजिक संरचनाओं, रीति-रिवाजों और पारंपरिक आदर्शों को गहराई से समझने का प्रयास करते है। इसका सीधा सा मतलब ये है की हम रामायण के माध्यम से प्रकट होने वाले सभी ढांचे जैसे की परिबार संरचना, धर्म और आदर्श हमारे भारतीय समाज को कैसे आकर दिए ये समझने की कोसिस करते है।
1- धर्म और संस्कृति का अनुसन्धान
मानवशास्त्र के रामायण की काहानी में ये अध्ययन करना चाहिए की कैसे भगबान राम ने भारतीय समाज में धर्म के मानकों को स्थापित किया और कैसे समाज के लोगो ने उसे अपने जीबन में लागु करना सीखा, सायेद यह अध्ययन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हो सकता है।
2- नैतिकता और आदर्श की अनुसन्धान
रामायण की प्राचीन इतिहास में भगबान राम का आदर्श पुत्र, भाई, और पति होने के रूप में चित्रित किया गया है, पैर कई दुःख कस्ट के बाद भी राम ने अपना कर्त्यब्य निस्टा पुर्बक पालन किए, मानवशास्त्रीय दृष्टिकोण से ये सभी बिसय कैसे समाज में नैतिक शिक्षा और सामाजिक कर्तव्यों को स्थापित करता है, ये महत्वपूर्ण बिसय है।
प्रमुख अनुसंधान परिणाम ( Prominent Research Outcomes )
रिसर्च के दौरान आने बलि चुनौतियाँ और सीमाएँ
इतिहासकारो के द्वारा रामायण की रिसर्च करने के दौरान कई मुस्किले और चुनौतियां आई, पैर फिर भी जितने हो सके उतने प्रमाण इतिहासकारो के द्वारा इकठा किआ गया है। और आज के अंध भक्त लोगो,जो की रामायण को मिथ्या मानते है, उन्हें रामायण की सचाई के बारे में अबगत कराता है। चलिए कुछ चुनतिया के ऊपर नजर डालते है।
1- निश्चीत सबूतों का अभाब
1- पुरातात्विक प्रमाणों का अभाव
उदाहरण
जैसे की अयोध्या में कई उत्खनन कार्य हुए हैं, लेकिन वहां से कोई ऐसा साक्ष्य नहीं मिला है जो सीधे राम के जन्म या उनके जीवन से संबंधित हो।
लंका जो की रावण का निबास था, आधुनिक शोध और पुरातत्व की दृष्टि से लंका की वास्तविक पहचान अभी भी अस्पष्ट है।
2- कालगत अंतर और साहित्यिक रूप
रामायण की घटनाएं किवदंतियों और धार्मिक दृष्टिकोण से भरे हुए हैं, तो क्या रामायण को ऐतिहासिक दृष्टिकोण से देखा जा सकता है, या इसे सांस्कृतिक काव्य के रूप में स्वीकार किया जाए।
3- मिथक और ऐतिहासिकता का अंतर
रामायण को इस रूप में प्रस्तुत किआ गया है क्यों की इनका उद्देश्य धार्मिक, नैतिक और दार्शनिक शिक्षा देना है।
4- समय की लंबाई और संस्करणों का प्रभाव
रामायण की रचनाएँ हजारों वर्षों पहले हुई थीं, और यह समयांतराल भी प्रमाण की अनुपलब्धता का कारण है।
रामायण की कहानियां
हम इस लेख के माध्यम से भारतीय महाकाब्य में से एक महान ग्रन्थ रामायण का इतिहास के बारे में चर्चा किए है। और रामायण की वैज्ञानिक और पुरातात्विक रिसर्च के माध्यम से हम रामायण की सचाई को इस समाज के सामने लाने की कोसिस कर रहे है। और अब हम आगे रामायण की काहानी के ऊपर छोटी सी नजर डालेंगे।
काहानी का आरम्भ !
रामायण की बालकांड
अयोध्या में एक राजा थे जिनका नाम दसरथ था और उनकी तीन राणिआ थे कौसल्या, कैकेयी और सुमित्रा। राजा दसरथ की कोई भी संतान नहीं थी जिसके कारन राजा ने अपने महल में पुत्रस्टि यज्ञ करबाया और इस यज्ञ के फलस्वरूप रानी कौसल्या से भगबान राम जन्मे, कैकेयी से भरत और सुमित्रा से लक्ष्मण बो शत्रुघ्न का जन्म हुआ।
भगबान राम बचपन से ही गुणाबान और सत्यबादी थे, एक बार महर्षि विश्वामित्र अयोध्या आये और राजा दसरथ से राम-लक्ष्मण को अपने साथ राक्षस का बिनस करने के लिए ले गए।
वाह पर राम और लक्ष्मण ने ताड़का और मरीचि जैसे राक्षस का बध किए और वाहा से वो लोग मिथिला राज्ञ गस्त किए, तभी मिथिला में राजा जनक की पुत्री सीता का स्वयम्बर का आयोजन किआ गया था, और सर्त ये था की जो शिव के धनुस को तोड़ेगा, वही सीता से बिभा करेगा। वाह पैर भगबान राम ने धनुस को तोड़ के सीता से बिभा किआ। और इसके पश्चात अन्य तीन भाइयो ने भी जनक की परिबार की कन्याओ से बिभा किआ।
रामायण की अयोध्याकांड
विवाह के पश्चात भगबान राम और माता सीता जब अयोध्या लोटे, तब दसरथ ने राम को अपना उत्तराधिकारी बनाने का निर्णय लिए। पैर ये बात से रानी कैकेयी ना खुस थी, तभी कैकेयी की दासी उन्हें याद दिलाती है की दसरथ ने उन्हें दो बरदान दिए थे। और बरदान के रूप में अप्प उन्हें कुछ भी मांग सकते है।
उसके बाद रानी कैकेयी ने राजा दसरथ से राम का 14 बर्स की बनबास और भरत के लिए राजा बनने की मांग की, और दसरथ भी ये बरदान देने के लिए मजबूर हो गए। बिना किसी बिरोध के भगबान राम ने बनबास स्वीकार किआ, और उन्ही के साथ माता सीता और लक्ष्मण ने भी बनबास जाने का निर्णय लेते है।
तभी भरत ने उन्हें रूकने के लिए कहते है, पैर राम धर्म के प्रति निष्ठा दिखाते हुए पिता की बचन का पालन करने का ठान लेते है। और वो चले जाते है, भरत ने राम की चरण पादुका को सिहांसन पर स्तापित करके खुद नंदीग्राम में रहकर राजकार्य का भार उठाते है।
रामायण में अरण्यकांड
बनबास के दौरान भगबान राम, लक्ष्मण और माता सीता ने कई आश्रोमो में दिन चर्या काटे, और अंत में वो तीनो पंचबटी में निबास करने लगे। दिन वर दिन समय बीत ता गया, और फिर एक दिन सूर्पनखा नाम की राक्षसी ने भगबान राम की सुंदरता को देख कर मोहित हो जाती है, और उन्हें विवाह की प्रस्ताब देती है। जिन्हे राम ठुकरा कर केहेते है, उनकी विवाह सीता से हो चुकी है, जिसे पूतना ने सीता को चोट पहंचना छह, लेकिन लक्ष्मण ने उसकी नाक काट दिए।
जिसे को सूर्पनखा गुसे में आकर खर और दूसन को उनकी बदला लेने के लिए गुहार लगाई। फिर राम के द्वारा उन दोनों का बद्ध हो जाता है। इसके बाद सूर्पनखा रावण से सहायता मांगती है, फिर रावण ने मरीचि को कहा तुम राम को केहि दूर ले जाओ, मरीचि एक सोने का मुर्ग बनकर सीता को आकर्षित करती है। जिसे की सीता उस मुर्ग को पाने की आग्रह करती है।
जिसे की राम उस मायाधारी मुर्ग के पीछे जाते है, और उसे मार डालते है। फिर एक अबाज गूंजती है, लक्ष्मण बचाओ, लक्ष्मण बचाओ जिसे की सीता को लगता है की राम कोई संकट में फस गए है, और वो लक्ष्मण को सहायता के लिए भेजते है। इसी बिच रावण मोके का फयदा उठा कर साधु की बेस में आकर माता सीता का हरण कर लेता है।
रामायण की किष्किंधाकांड
हरण के बाद माता सीता की खोज में राम-लक्ष्मण किष्किंधा जा पहंचे। जहाँपर उनका भेट बानर राज सुग्रीब से होता है, और सुग्रीब के द्वारा बचन दिए गया की वो अपनी सेना के साथ माता सीता को खोजने में मदत करेंगे। यही पर भगबान हनुमान जो की सुग्रीब का मुख्य सहयोगी थे, वो राम के परम भक्त बन गौ।
सुग्रीब की ये सहायता के बदले राम ने परम बीर बलि का बद्ध करने में सुग्रीब का साथ देते है। और फिर सुग्रीब किष्किंधा का राजा बन जाते है। इसके पश्चात सुग्रीब का आदेश से हनुमान और बानर सेना माता सीता की खोज का जिम्मेदारी लेते है।
रामायण की सुंदरकांड
जानकारी के हिसाब से माता सीता को लंका में बंदी किआ गया था। और लंका तक पहंचने के लिए एक बिसाल समुद्र पार करना पड़ेगा। भगबान हनुमान समुद्र पार करके लंका पहंचे, वाहा पे एक स्तान अशोकबाटिका में सीता को कैद किआ गया था। जब सीता ने हनुमान को देखा तो सन्देश के रूप में उनकी एक अंगूठी राम को देने के लिए दे दिए।
फिर हनुमान ने भगबान राम की सन्देश रावण को दी, की यदि उसने सीता को बापस नहीं लौटाया, त उसका बिनास निश्चित है। इसी बात पैर रावण क्रोधित हो गया और हनुमान की पूछ पैर आग लगा दी। हनुमान ने अपनी वो जलती पूछ से पूरा लंका ही जला दी। और एक ही छलांग में बापस आ कर राम को सीता का पता बताया।
रामायण की युद्धकांड
इसके बाद राम की बानर सेनाओ ने समुद्र को पार करने के लिए “रामसेतु” का निर्माण किआ। जिसके बारे में हमने इसी लेख में चर्चा किए है। और फिर लंका में बानर सेना और राख्यास के बिच भयंकर यूद्ध होता है।
यूद्ध के दौरान रावण का साम्राज्य धंस हो गया, और भगबान राम के हाथ रावण का बद्ध किआ गया, फिर माता सीता को मुक्त कराया गया।
उसके बाद राम, लक्ष्मण और सीता अयोध्या लोटे, जहा पैर की उन्हें अग्नि परिक्षया देना पड़ा उनकी पबित्रता को प्रमाण करने के लिए।
रामायण में उत्तरकांड
भगबान राम, सती सीता और लक्ष्मण बापस अपनी राज्ञ लोटे। और फिर राम का राज्याभिषेक किआ गया। और राम राज्ञ की स्तापना हुई।
लेकिन जैसे जैसे समय बीतता गया, लोगो का भी मन बदल गया, फिरसे अयोध्या बासी ने सीता की पबित्रता पैर प्रश्न उठाए। इस कठिन स्तिति में भगबान राम ने धर्म और प्रजा के हित के लिए माता सीता की त्याग करते है। जिसे की सती सीता रुसी बाल्मीकि के आश्रम में सरन लेती है। और वहा सीता ने दो पुत्र संतान को जन्म दिए लब और कुश।
लब और कुश को गुरुकुल में एक योद्धा के रूप में तैयार किआ गया। एक बार उन दोनों ने राम की अस्वमेध घोड़े को रोक लिया। और श्रीराम को उनकी ही कथा सुनाई, जिसे की राम का मन पिघल गया और श्रीराम माता सीता को बापस लाने का निर्णय लेते है।
और फिर रामायण की अंत समय में माता सीता ने पृथिबी माता से प्राथना करके धरती में समां गयी। फिर भगबान राम ने भी अपनी कार्य का सम्पूर्ण करके सरसु नदी में जलसमाधि लेकर दिब्येलोक लोट गए।
रामायण की सन्देश
ये महाकाब्य समाज को कर्तब्य करना, प्रेम, त्याग और सहनशीलता का सन्देश देती है। रामायण सिर्फ एक कथा नहीं है, ये धर्म और सत्य का प्रतिक है। जिसे की समाज की लोगो को सीखना चाहिए की कठिनाईओ के बाबजुत धर्म का पालन कैसे किआ जाये। और श्रीराम के जैसे ही जिबन मे आदर्श पुत्र, आदर्श पति और आदर्श भाई कैसे बने।
ये सभी जानकारी हमने कई बुक्स, आर्टिकल और वीडियोस के माध्यम से प्राप्त की है।
निस्कर्स
रामायण सिर्फ एक हिंदुसिम का पौराणिक कथा नहीं है। रामायण का काहानी भारतीय इतिहास, संस्कृति, और बैज्ञानिक का संगम है। वैज्ञानिक और पुरातात्विक अनुसन्धान से पाए हुए प्रमाण ये संकेत देती है की रामायण का इतिहास छुपा हुआ हो सकता है। कई प्रमाण का होना जैसे की रामसेतु, लंका का भूगोल दृस्य इस महाकाब्य को इतिहासिक और बैज्ञानिक संधर्व प्रदान करती है। रामायण की इतिहास को आस्था तक सिमित न रखकर इसका बैज्ञानिक और इतिहासिक पहलुओ को समझने की कोसिस करना चाहिए। धन्यबाद !
1- रामायण में क्या दिखाया गया है ?
Ans- रामायण में भगबान राम की आदर्श जीबन, माता सीता की त्याग और उनके संघर्ष की गाथा दर्शाया गया है।
2 – रामायण का लेखक कोण है ?
Ans- रामायण का लेखक महर्षि बाल्मीकि है।
3- रामायण में कितने कांड है ?
Ans- रामायण में पुरे सात कांड है :- बालकांड, अयोध्याकांड, अरण्यकांड, किष्किंधाकांड,सुंदरकांड, युद्धकांड और उत्तरकांड।
4- रामायण में सोने के हिरन का क्या महोत्वो है?
सोने का हिरन के रूप में मरीचि थे, जो रावण के आदेश से आये थे। उनको आदेश मिला था की राम और लक्ष्मण को कैसे भी करके सीता से दूर ले जाए। जिसे की सीता का हरण करने में आसानी हो।
5- लक्ष्मण ने सूर्पणखा की नाक क्यों कटी ?
Ans- सूर्पनखा राक्षसी ने भगबान राम की सुंदरता को देख कर मोहित हो जाती है, और उन्हें विवाह की प्रस्ताब देती है। जिन्हे राम ठुकरा कर केहेते है, उनकी विवाह सीता से हो चुकी है, जिसे पूतना ने सीता को चोट पहंचना छह, जिस बजह से की लक्ष्मण ने उसकी नाक काट दिए।
6- सीता स्वयंबर की कथा क्या है ?
सीता स्वयंबर की कथा में भगबान शिव का एक अद्भुत धनुस रखा गया था, जिसे उठा कर प्रत्यंचा चढ़ाने बाले को सीता से विवाह का अधिकार मिलेगा। तब रुसी विश्वामित्र के आदेश से भगबान राम धनुस को आसानी से उठा कर उसकी प्रत्यंचा चढ़ा देती है। और तब धनुस टूट जाता है, और उसके बाद राम-सीता का विवाह सम्पूर्ण हो जाता है।
7- बाल्मीकि रामायण और रामचारितमानस में क्या अंतर है
बाल्मीकि रामायण
बाल्मीकि रामायण संस्कृत भासा में लिखी गई है और ये महाकाब्य भगबान श्रीराम के बास्तबिक घटनाओ का बर्णन करती है। और ये ग्रन्थ को आदिकाबय भी कहा जाता है।
रामचरितमानस
रामचरितमानस को तुलसीदास के द्वारा अबधि भासा में लिखा गया था, ये महाकाब्य में भगबान राम को बिस्णु के अबतार के रूप में दिखाया गया है।