Kedarnath Story In Hindi: भगबान शिव की रहस्यमई यात्रा। केदारनाथ की कहानी

Kedarnath Story In Hindi: दरासल जब महाभारत युद्ध का खात्मा होता है। जिसमें पांडवों ने कौरवों को हराकर विजय हासिल किया। युद्ध के दौरान पांडवों को अपने भाइयों की हत्या करने पड़ी। जिससे कि उनके ऊपर भातृ हत्या,पितृ हत्या और गौ हत्या का पाप लगता है। और इसी पापों से मुक्ति पाने के लिए पांडव भगबान कृष्ण के अनुमति से भगवान शिव के शरण में जाते हैं। तभी भगवान शिव बेल का रूप धारण करके पांडवों को दर्शन देते हैं। और उन्हें पापों से मुक्ति कर देते हैं।

और यहां से ही आरंभ होता है केदारनाथ मंदिर का इतिहास की कथा।

केदारनाथ मंदिर में त्रिकोण शेप का एक शिवलिंग है। जिसमें हर वक्त भगवान शिव बास करते हैं। हिंदू धर्म में जितने भी शिव मंदिर है हर एक मंदिर का शिवलिंग आकृति कुछ अलग प्रकार का है। और केदारनाथ का शिवलिंग का आकृति सबसे अलग है। त्रिकोण शेप विशिष्ट।

Kedarnath Story In Hindi ( केदारनाथ की कहानी हिंदी में )

बाबा केदारनाथ की कहानी को पूरी तरह से जानने के लिए यहां से ध्यान से पढ़ें। क्योंकि कहानी के साथ-साथ हम इस लेख में केदारनाथ मंदिर से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण जानकारी के विषय में जानेंगे।

केदारनाथ की कहानी में महाभारत से सम्भंदित कथा

यह कहानी आरंभ होता है द्वापर युग से, जिस समय महाभारत युद्ध चल रहा था। कहानी के हिसाब से महाभारत युद्ध में विजय हासिल करने के बाद पांडवों के ऊपर भातृ हत्या और गौ हत्या का पाप लगा था। और इस पाप से कैसे मुक्ति पाया जाए इस पर बात करने के लिए पांडवों ने श्री कृष्ण के सहित इस विषय पर चर्चा की। जिससे कि भगवान कृष्ण ने कहा यह पाप से मुक्ति केवल भगवान शिव शंकर ही दे सकते हैं। आप सभी तुरंत भगवान शिव की दर्शन हेतु निकल जाए। कृष्ण ने कहा। पांचों पांडवों ने यह प्रस्ताव को स्वीकार कर लिए।

कृष्ण के द्वारा पांडवों को सही रहा दिखाने के बाद द्वारिका नगरी भी समुद्र के लहर के नीचे डूब गया। और इसके बाद भगवान कृष्ण ने भी अपने देह को त्याग कर परम धाम की यात्रा किए। इसी बात से पांचों पांडव और भी ज्यादा दुख में रहने लगे।

क्योंकि पहले से ही पांडवों ने अपने पाप कर्म के वजह से भगवान शिव से आशीर्वाद पाना चाहते थे। जिससे कि अभी पांचों पांडवों के सहित द्रौपदी माध्य मुक्ति पाने के पथ पर चलने लगे।

पर भगवान शिव पांचों पांडवों के ऊपर क्रोधित थे उनकी यह पापों कार्य के कारण। और उन्हें दर्शन नहीं देना चाहते थे। यात्रा के दौरान सबसे पहले पांडवों ने काशी की यात्रा की पर भगवान शिव पांडवों को वहां पर दर्शन नहीं देते। पांचों पांडवों ने भगवान शिव की खोज करते-करते हिमालय पर्वत तक पहुंच जाते हैं। पर फिर भी भगवान शिव उन्हें दर्शन नहीं देते हैं।

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भगवान शिव पांचों पांडवों को दर्शन नहीं देना चाहते थे। और इसलिए भगवान शिव हिमालय पर्वत से जाकर केदार में बस जाते हैं। किंतु अच्छी बात यह है कि पंचू पांडवों भी अपने वचन में बंधा थे जिससे कि वह लोग भी भगवान शिव के पीछे-पीछे केदार तक पहुंच गए।

भगवान शिव उस वक्त केदार में एक बेल का रूप धारण करते हैं। और गए की भीड़ में मिल जाते हैं। पर पांचों पांडवों को इस बात का आभास हो चुका था। और इसिलए पांचों पांडवों में से भीम एक विशाल रूप धारण करके दो पहाड़ों के ऊपर अपना पैर रख देते हैं। यह देखकर सभी गए बिल डर के मारे चले जाते हैं, पर भगवान शिव का रूप वहां से एक इंच भी नहीं हिले।

जिस की भीम ने उस बेल की सिंह को पकड़ कर बलपूर्वक वहां पर रखने की प्रयास करने लगे। जिसकी वजह से भगवान शिव की बेल रूप भूमि में धसने लगा। पर बेल की पीठ का ऊपरी अंक वहां पर रह गया, जिसे की आज हम केदारनाथ मंदिर की शिवलिंग कहते है।

और बेल के अन्य भाग जैसे की भेज तुंगनाथ में, मुख रुद्रनाथ में और उनकी चैट कपिलेश्वर में प्रकट हो गया। और इसलिए ही यह पांच स्थानों को पंच केदार के नाम से जाना जाता है। इसके बारे में हम आगे चर्चा करेंगे।

यह सभी घटना होने के बाद पांचों पांडव कि यह भक्ति देख कर भगवान शिव प्रसन्न हो जाते हैं। और उन्हें दर्शन देकर उनकी सभी पापों से उन्हें मुक्ति दे देते हैं।

केदारनाथ मंदिर की निर्माण कार्य

केदारनाथ मंदिर का निर्माण पांडवों के वंशज जन्मेजय द्वारा किया गया था। और जब जगतगुरु आदि शंकराचार्य जन्म लेते हैं, उन्होंने संपूर्ण भारतवर्ष की पदयात्रा करने की शपथ लेते हैं। इसके दौरान 8th century AD में जगतगुरु आदि शंकराचार्य के द्वारा केदारनाथ मंदिर का पुनः निर्माण कार्य किया जाता है।

32 की उम्र में केदारनाथ के समीप शंकराचार्य की मृत्यु हुआ था, जिससे कि मंदिर की पिछले हिस्से में जगतगुरु आदि शंकराचार्य की समाधि स्थापित किया गया है।

इसके बाद भी कई राजा आकर केदारनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण करते है।

केदारनाथ मंदिर 400 बर्ष तक बर्फ के निचे दबा रहा

Wadia Institute Of Himalayan Geology के स्टडी के हिसाब से 13 or 14 century में लघु हिमयांग आयाथा जिसकी वजह से केदारनाथ मंदिर पूरी तरह से बर्फ के नीचे 400 साल तक दबा हुआ रहे गया था। ओर कहा जाता है कि आज भी मंदिर में कई सारे दाग है।

केदारनाथ में बाड़ की कहानी

जून 2013 में उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश में एक भयानक बाड़ आया था। यह बाढ़ की प्रभाव अधिक मात्रा में केदारनाथ के ऊपर पड़ा था। जिससे कि कई सारे घर उजड़ गए, बहुत से लोग मारे गए और बड़े-बड़े शिलाखंड आकर मंदिर के आसपास रह गया। पर मंदिर के ऊपर एक भी खरच तक नहीं आई।

kedarnath mandir ki kahani

इतने सारे पत्थर के बीच एक बहुत ही बड़ा पत्थर मंदिर के पीछे भाग में कवच की तरह रह गई। जिससे कि पानी पत्थर में टकराकर दो साइड में चला गया। और मंदिर सुरक्षित रहा। और आज उस पत्थर को भीमशिला के नाम से जाना जाता है।

पंच केदार क्यों कहा जाता है?

केदारनाथ मंदिर का इतिहास में पंच केदार की कथा अक्सर सुनाई देती है। चलिए जानते है क्या है ये?

जब भगवान शंकर बेल के रूप में प्रकट हुए तो उनका धड़ से ऊपरी भाग काठमांडू में प्रकट हुआ वहां पर अब पशुपतिनाथ का प्रसिद्ध मंदिर स्थापित है। भगवान शिव की भुजाएं तुंगनाथ में, मुख रुद्रनाथ में, नाभि मदमदेश्वर में और भगवान शंकर की जटाएं कल्पेश्वर में प्रकट हुई थी। और इन्हीं विशेषताओं के आधार पर केदारनाथ को पंच केदार भी कहा जाता है।

केदारनाथ मंदिर की यात्रा कैसे करे?

कोई भी व्यक्ति अगर 4 धाम की यात्रा करता है। तो उसे केदारनाथ मंदिर का दर्शन भी करना पड़ेगा। और केदारनाथ मंदिर के अलावा अन्य तीन मंदिर है, बद्रीनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री। हर साल ओंकारेश्वर मंदिर के पुरोहित इसी मंदिर की दर्शन की तिथि तय करते है।

अक्षय तृतीया और महाशिवरात्रि के दिन कुछ खास पुरोहितों द्वारा केदारनाथ में स्थित स्वयंभू शिवलिंग की आराधना के लिए तिथि सुनिश्चित की जाती है।

केदारनाथ मंदिर में दर्शन का समय क्या है?

शीतकालीन समय में केदारनाथ मंदिर बर्फ से ढका हुआ रहता है। इसीलिए पुरोहितों द्वारा नवंबर 15 से लेकर शीतकाल के अंत यानी 14 या 15 अप्रैल तक केदारनाथ मंदिर के कपाट बंद कर दिए जाते हैं। ओर भगवान शंकर की पांच मुख वाली प्रतिमा को उखीमठ में स्थापित किया जाता है।

केदारनाथ मंदिर के द्वार सुबह 6:00 बजे खुल जाते हैं। ताकि भक्त दर्शन कर सके। भगवान शिव की पूजा में प्रातः कालिक पूजा, महाभिषेक पूजा, अभिषेक, रुद्राभिषेक षोडशोपचार पूजन, अष्टोंपाचार पूजन‌, संपूर्ण आरती, पांडव पूजा, गणेश पूजा, श्री भैरव पूजा, शिव सहस्त्रनाम किया जाता है।

केदारनाथ मंदिर में दोपहर 3:00 से 5:00 के मध्य एक विशेष पूजा होती है। ओर इसके बाद मंदिर की फाटक को बंद किया जाता है।

ओर इसके पश्चात साम के 5 बजे मंदिर का फाटक खोल दिया जाता है। ओर साम 7.30 से 8.30 बजे तक भगवान शिव की आरती की जाती है। ओर बाद में मंदिर का फाटक बंद किया जाता है।

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अक्सर पूछे जाने बाले सबाल

1- केदारनाथ की चढ़ाई कितनी है?

Ans- केदारनाथ मंदिर के दर्शन करने के लिए आपको 16 किलोमीटर की चढ़ाई करनी पड़ेगी। इसकी आराम भी गौरीकुंड से होता है। केदारनाथ मंदिर 11,755 फीट की ऊंचाई पर स्थित है।

2- केदारनाथ मंदिर कितना पुराना है?

Ans- देखा जाए तो केदारनाथ मंदिर 1000 बर्ष से भी पुराना है यह कहा जाता है। पंचू पांडव के बांसाज जन्मेजय द्वारा बनवाया गया था। ओर बाद में आदि गुरु शंकराचार्य के द्वारा 8th century AD में केदारनाथ मंदिर का पुनः स्थापन किया गया।

3- केदारनाथ से बद्रीनाथ की दूरी

Ans- केदारनाथ से बद्रीनाथ की दूरी सड़क मार्ग से लगभग 218 से 220 किलोमीटर है। यात्रा में पहाड़ी सड़कों के कारण लगभग 9 से 11 घंटे लगते हैं।

4- केदारनाथ मंदिर किधर है?

Ans- केदारनाथ मंदिर उत्तराखंड राज्य में रुद्रप्रयाग जिले में स्थित है। यह हिमालय की गोद में, समुद तल से 11,755 फीट की ऊंचाई पर, मंदाकिनी नदी के किनारे में स्थित है।

5- क्या केदारनाथ एक ज्योतिर्लिंग है?

Ans- केदारनाथ मंदिर भारत के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है और इसे एकादश ज्योतिर्लिंग भी कहा जाता है। यह मंदिर चार धाम और पंच केदार में भी शामिल है।

निस्कर्स

हमने इस लेख के माध्यम से Kedarnath Story In Hindi में सभी जानकारी दिए है। फिर भी अगर हमारे द्वारा कोई जानकारी अधूरा रहे गई है, तो हमें माफ़ कर दीजिएगा। और अपना राय कमेंट पर जरूर बताना।

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